गुमनामी में महानायक: शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के अलावा इन 10 शूरवीरों को भी मिली थी सजा, क्या जानते हैं आप

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लाहौर असेंबली में बम विस्फोट करके ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिलाने वालों में शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव के साथ 10 अन्य महानायक भी थे। गुमनामी में रहे इन महानायकों के नाम शायद ही किसी को याद हों।

सात ऐसे शूरवीर थे, जिन्हें काला पानी की सजा दी गई थी। वहीं एक शूरवीर को सात वर्ष की कैद व एक अन्य को पांच वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई थी। इन शहीदों में एक ऐसे योद्धा भी थे, जिन्होंने जेल में आमरण व्रत रखकर देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।

वहीं आजादी के अन्य परवाने की जजमेंट आने से पहले ही मृत्यु हो गई थी। 23 मार्च 1931 का दिन शहीद दिवस के रूप में जाना जाता है। इस दिन शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने हंसते-हंसते मौत को गले लगाया था। लाहौर असेंबली बम कांड का फैसला आठ अक्तूबर 1930 को सुनाया गया था। नौ अक्तूबर 1930 को लाहौर से प्रकाशित एक अखबार ने लाहौर केस के जजमेंट को काफी प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

इस अखबार को नौ दशकों से सुनाम के रहने वाले पुरातत्वविद स्वर्गीय रामेश्वर दास जिंदल संभाले हुए थे। अखबार में प्रकाशित जजमेंट में साफ तौर पर सरदार भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को फांसी की सजा दी गई और जतिंदरनाथ दास को भी आरोपी बनाया गया था। हालांकि उनकी जेल में ही मृत्यु हो गई थी।

किशोरी लाल, जयदेव कपूर, शिव वर्मा, गया प्रसाद, संवल नाथ तिवारी, महावीर सिंह और विजय कुमार सिन्हा को काले पानी की सजा सुनाई गई थी। कुंदन लाल को सात वर्ष और प्रेम दत्त को पांच वर्ष की कैद हुई। वहीं देसराज, अजय कुमार घोष और मिस्टर सनयाल को दोषमुक्त करार दिया गया था। ये ऐसे शहीद हैं, जिनके नाम आज भी गुमनाम हैं। देश की आजादी की खातिर मर मिटने वाले इन शहीदों को नमन करना सभी का फर्ज है।

भगत सिंह को दोस्त मानते थे ऊधम सिंह
शहीद ऊधम सिंह का शहीद भगत सिंह से गहरा लगाव था और ऊधम सिंह, भगत सिंह को अपना सबसे करीबी दोस्त मानते थे। ऊधम सिंह को उम्मीद थी कि ब्रिटिश हुकूमत उन्हें भी उसी तारीख 23 मार्च को फांसी देगी, जिस तारीख को शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। ऊधम सिंह सोचते थे कि उन्हें दिन में फांसी दी जाएगी, जबकि उनके दोस्त शहीद भगत सिंह और उनके साथियों को रात के समय फांसी दी गई थी।

ऊधम सिंह ने केकस्टन हाल में 13 मार्च 1940 को माइकल ओडवायर को मार गिराया था और लंदन की बेरिकस्टन जेल में कैदी नंबर 1010 की हैसियत से मार्च 1940 को अपने मित्र एसएस जौहल को लिखे पत्र में ऊधम सिंह ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि मुझे भी उसी तारीख को फांसी दी जाएगी, जिस तारीख को मेरे दोस्त को फांसी दी गई थी।

वो 23 तारीख थी, जिस दिन मेरा सबसे अच्छा दोस्त मुझे छोड़कर चला गया था। उन्हें रात के समय फांसी दी गई थी और शायद मुझे दिन के समय फांसी दी जाए। इस पत्र का पंजाबी में अनुवाद करके सुनाम स्थित उनके पैतृक घर में लगाया गया है। इसके अलावा कई अन्य पत्रों में भी ऊधम सिंह ने बार-बार शहीद भगत सिंह के साथ खुद की दोस्ती का जिक्र किया है।

अवैध हथियार रखने के आरोप में ऊधम सिंह को एक अक्तूबर 1927 को पांच वर्ष की कैद हुई थी। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी देने की सूचना जब ऊधम सिंह को जेल में मिली तो वे आहत हो गए। उस दिन उन्होंने खाना तक नहीं खाया था। इसका जिक्र कई शोधकर्ताओं ने भी किया है। कई किताबों में भी इसका उल्लेख है।

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