कारगिल हीरोः कारगिल युद्ध में दुश्मनों को मात देकर, अनंतनाग के सिरोहाम की चौकियों पर तिरंगा लहराने वाले शहीद मेजर अजय प्रसाद की जानिए बहादुरी की दास्तां

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प्रस्तुति नवीन चन्द्र पोखरियाल, सचित गौतम

कारगिल युद्ध हुए 23 साल बीत गए हैं। लेकिन हमारे वीर जवानों की शहादत और उनकी बहादुरी के किस्से आज भी हमारी रगों में जिन्दा हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे वीर बहादुर जवान के हौसले और जज्बे की कहानी बताएंगे। जिन्होंने ना केवल भारत को विजयी बनाने में अहम भूमिका अदा की बल्कि अपनी शहादत से लोगों के लिए एक मिसाल कायम कर दी। कारगिल के युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले एक ऐसे ही बहादुर सैनिक थे भोपाल के शहीद मेजर अजय प्रसाद। मेजर अजय प्रसाद ऐसे शख्स थे, जिन पर उनकी बटालियन को बहुत ज्यादा भरोसा था। सेना में शामिल होने के बाद से वे श्रीलंका में लिट्टे से भिड़े। वहां कामयाबी के बाद मिजोरम में उल्फा उग्रवादियों को नेस्तनाबूद किया और फिर पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाते हुए कारगिल युद्ध में शहीद हो गए। मेजर अजय आज हमारे बीच जीवित नहीं है लेकिन उनकी बहादुरी की दास्तां आज भी जीवित है। आइए जानते हैं उनके जीवन का प्रेरणादायी सफर।

शहीद मेजर अजय प्रसाद 1986 में सेना में हुए थे शामिल

मध्य प्रदेश के भोपाल के रहने वाले शहीद मेजर अजय प्रसाद के पिता आर एन प्रसाद और मां अब भोपाल में एकाकी जीवन जी रहे हैं। लेकिन आज भी उनके ह्रदय में अपने बेटे की यादें ताजा हैं। शहीद मेजर अजय प्रसाद 1986 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी से पास आउट होने के बाद मैकेनाइज्ड इंफेंट्री बटालियन में शामिल हुए थे ।कमीशन मिलते ही वो श्रालंका चले गए। शांति सेना के साथ 1988 में लिट्टे के साथ मुठभेड़ में शामिल हुए और लिट्टे का डटकर मुकाबला किया और उसमें कामयाब हुए।

हर मिशन में होते थे कामयाब

श्रीलंका से लौटते ही मेजर अजय प्रसाद को उल्फा उग्रवादियों से मिल रही चुनौतियों से निपटने के लिए मिजोरम भेजा गया। वहां उनकी उल्फा उग्रवादियों से मुठभेड़ हुई और भारतीय सेना ने उसे पस्त कर दिया। कमीशन मिलने के बाद भी मेजर अजय को एक दिन की भी फुर्सत नहीं मिली। वो जी-जान से भारत माँ की सेवा करने में डटे रहे। वो हमेशा किसी ना किसी मिशन पर ही रहते थे। मिशन में भारत का झंडा बुलंद करने के साथ ही कभी कमांडो ट्रेनिंग तो कभी कॉम्बैट ट्रेनिंग में रहे। यूनिट में जब आए तो कश्मीर जाना पड़ा।अजय को हर कदम पर अपने मिशन में सफलता ही मिली। मेजर अजय प्रसाद जिस भी मिशन में जाते वहां से हमेशा सफल होकर ही लौटते थे।

कई खतरनाक मिशन को दिया था अंजाम

शहीद मेजर अजय शुरू से ही खतरनाक मिशन को अंजाम देने के लिए जाने जाते थे। शहीद मेजर अजय प्रसाद सेना के लिए कितने महत्वपूर्ण थे, इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी जान बचाने के लिए सेना ने उन्हें भेष बदलने का आदेश दे दिया था। छह फीट लंबे गोरे चिट्टे मेजर अजय को सरदार बनना पड़ा। इसके लिए उन्हें अपनी दाढ़ी भी बढ़ानी पड़ी। जब भी मिजोरम से दिल्ली या भोपाल जाना होता था, तो सेना उनका रिजर्वेशन ट्रेन से कराती थी और भेष बदलवाकर हेलीकॉप्टर या विमान से भेजती थी। उन्होंने उग्रवादियों से लड़ने के लिए दाढ़ी बढ़ाई थी। कश्मीर में उन्होने उग्रवादी को पकड़ा था लेकिन बाद में वो बच निकला। अजय ने कश्मीर में ही पेट्रोलिंग के दौरान हिजबुल मुजाहिदीन के तीन आतंकियों को मार गिराया था। इस घटना के बाद अजय कई बार आईईडी ब्लास्ट में बाल-बाल बचे थे।

कारगिल युद्ध में दुश्मनों को कर दिया था परास्त

साल 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में अपने वतन के लिए बलिदान होने वाले मेजर अजय प्रसाद ने अहम भूमिका निभाई थी। कारगिल युद्ध में उन्हें एक सैनिक टुकड़ी की कमान मिली थी। टुकड़ी ने अनंतनाग के सिरोहाम की दो चौकियों पर तिरंगा लहरा दिया था। वे तीसरी चौकी की ओर बढ़ रहे थे, उसी दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर दिया और जिसके कारण भारत मां के लाल मेजर अजय प्रसाद शहीद हो गए।

आखिरी लम्हों में कही थी ये बात

मेजर अजय प्रसाद ने आखिरी लम्हों में कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सैन्य अधिकारियों को यह बताया था कि भारतीय जवान आतंकवादियों से नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना से मुकाबला कर रहे हैं। जब उन्हें यह बात समझ आई, तो उन्होंने और मदद की मांग की। अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने अवंतीपुर में पाकिस्तानी सेना से एक के बाद एक तीन चौकियां छीन लीं, लेकिन दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से भारतीय वायु सेना की मदद समय पर नहीं मिल सकी और दुश्मनों से लड़ते हुए वे शहीद हो गए।

सरकार ने मरणोपरान्त सेना मेडल से किया था सम्मानित

भोपाल के सपूत अजय प्रसाद ने कारगिल युद्ध के दौरान 19 मई 1999 को अपने प्राणों की आहुति दी थी। भारत के राष्ट्रपति ने शहीद मेजर अजय प्रसाद को मरणोपरान्त उनकी बहादुरी और जज़्बे के लिए सेना मेडल से अलंकृत किया था। स्थानीय सैनिक कल्याण कार्यालय के सभा कक्ष में शहीद मेजर अजय प्रसाद के चित्र पर बोर्ड एवं लीग के पदाधिकारियों, सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों तथा कार्यालयीन कर्मचारियों ने फूल-माला और पुष्प चढ़ाकर श्रद्धा-सुमन अर्पित किए थे।

आज पूरा भारत शहीद मेजर अजय प्रसाद की बहादुरी और उनके जज़्बे को प्रणाम करता है। शहीद मेजर अजय प्रसाद आज करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। शहीद मेजर अजय प्रसाद की बहादुरी और उनकी शहादत को शत-शत नमन करता है।

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