नीतीश कुमार: बिना विचारधारा के चाणक्य

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समाजवादी दिग्गजों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार  (71) ने न केवल अपना अस्तित्व बनाए रखा है बल्कि एक चतुर राजनेता के रूप में भी उभरे हैं.

उन्हें हमेशा यह पता होता है कि राजनीतिक हवा किस दिशा में बह रही है, जबकि इस दौरान दूसरे कई समाजवादी दिग्गज सत्ता की राजनीति से बाहर चुके हैं. उन्होंने “भगवा उदय” की परवाह किए बिना समाजवादी चमक को बनाए रखने की पूरी कोशिश की है. यही कारण है कि वह अपने पूर्व समाजवादी सहयोगियों, जैसे राजद के लालू प्रसाद और यहां तक कि कांग्रेस के भी साथी रहे हैं. वह बार-बार साबित करते हैं कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता.

1 मार्च, 1951 को नालंदा के बख्तियारपुर में जन्में नीतीश कुर्मी समुदाय से आते हैं. यह जाति बिहार में एक ओबीसी वर्ग में शामिल है. उनके नाम कई उपलब्धियां हैं. पिछले 15 वर्षों में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उनको उन सड़कों को फिर से बनाने का श्रेय दिया गया है, जिनका अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया था. इस दौरान उन्होंने पुलों का निर्माण, लंबित इंफ्रा परियोजनाओं को भी पूरा किया. अपराधियों के खिलाफ उन्होंने कड़ी कार्रवाई की. साथ ही उन्होंने जानकारी योजना, ई-शक्ति नरेगा कार्यक्रम, साइकिल और भोजन कार्यक्रम, और महिलाओं व अति पिछड़ी जातियों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की. उनकी सरकार ने बिहार को “dry state” घोषित किया और शराब की बिक्री व खपत पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया. उनके इस कदम से राज्य में महिलाओं के खिलाफ हिंसा कम हुई और साथ ही अपराध भी कम हुआ. इसके लिए उन्हें सराहना भी मिली.
2017 में टर्निंग प्वाइंट

‘मुन्ना’ और ‘सुशासन बाबू’ के नाम से लोकप्रिय नीतीश की राजनीतिक यात्रा जेपी आंदोलन (1974-77) से शुरू हुई. जयप्रकाश नारायण, कर्पूरी ठाकुर, एसएन सिन्हा (जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक) और पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह जैसे समाजवादी उनके साथ रहे. पेश से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर रहे नीतीश ने लालू प्रसाद, अब उनके प्रतिद्वंदी, और शरद यादव से मित्रता की. हालांकि, 2017 में उन्होंने शरद यादव का साथ छोड़ दिया. शरद यादव के साथ जिस तरह से वह जुदा हुए, वह यह बताता कि नीतीश किस मिट्टी के राजनीतिज्ञ हैं.
पुराने दौर पर एक नजर

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश और शरद के बीच संबंध बिगड़े. शरद अपनी मधेपुरा सीट हार गए, इसलिए नीतीश ने शरद को राज्यसभा भेजने का फैसला किया. लेकिन, चुनाव से ठीक पहले पार्टी के असंतुष्टों का एक समूह सामने आया. हालांकि, उन्होंने शरद के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया और यहां तक कि उन्होंने घोषणा की कि उन्हें शरद का आशीर्वाद प्राप्त है, लेकिन इस दावे ने दिग्गज समाजवादी नेता के गेम प्लान को लेकर अविश्वास पैदा किया.

जीतन राम मांझी के सीएम पद से हटने के दौरान नीतीश और शरद के बीच का मतभेद और बढ़ गया. नीतीश ने शरद पर विश्वास खो दिया. मांझी सहित कई लोगों ने खुले तौर पर स्वीकार किया कि शरद ने उनसे कहा था कि अगर नीतीश कहते भी हैं तो वह इस्तीफा न दें. शरद पर यह भी संदेह था कि उन्होंने सभी समाजवादी दलों के एक पार्टी में विलय की योजना को विफल करने में समाजवादी पार्टी के सांसद राम गोपाल यादव की मदद की थी. हालांकि, शरद का भविष्य तब से संदेह के घेरे में था जब 2016 में नीतीश ने उन्हें पार्टी अध्यक्ष के पद से हटा दिया.

‘सुशासन बाबू’ ने अपने तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के मुद्दे पर राजद के साथ “मतभेद” का हवाला देते हुए 26 जुलाई 2017 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. बीजेपी आगे बढ़ी और नीतीश के कदम की प्रशंसा कर दी. और उनके नेतृत्व वाली सरकार को अपना समर्थन दिया. 27 जुलाई, 2017 को नीतीश ने बीजेपी के समर्थन से फिर से बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.
नए-पुराने पार्टनर की तलाश

नीतीश के राजनीतिक सफर को मोटे तौर पर चार चरणों 1989-96, 2004-13, 2005-13 और 2013-2017 में बांटा जा सकता है. पहले चरण में उन्हें लालू प्रसाद का समर्थन मिला हुआ था और वे बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता और जनता दल के महासचिव बने. जल्द ही, वह लोकसभा के लिए चुने गए और वीपी सिंह सरकार में कृषि राज्य मंत्री के रूप में शामिल हो गए और कुछ समय के लिए उन्होंने रेलवे राज्य मंत्री के रूप में भी कार्य किया. 1994 में वे नीतीश ही थे जिन्होंने बिहार में जनता दल पर लालू के नियंत्रण के खिलाफ विद्रोह किया था. उन्होंने जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई.

1996 में जनता दल के नेतृत्व वाला संयुक्त मोर्चा गठबंधन केंद्र की सत्ता में आया. सीताराम केसरी के नेतृत्व में कांग्रेस के बाहरी समर्थन के साथ एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने. संयुक्त मोर्चा के अलग-अलग घटकों के समर्थन से सत्ता हासिल करने की उम्मीद में कांग्रेस ने एक साल से भी कम समय में अपना समर्थन वापस ले लिया और आईके गुजराल अगले प्रधानमंत्री बने. उनकी सरकार भी कुछ ही महीनों में गिर गई और फरवरी 1998 में जनता दल के नेतृत्व वाले गठबंधन ने बीजेपी के हाथों सत्ता गंवा दी. जनता दल, जो 1996-98 तक सत्ता में थी, अचानक राजद, बीजद, जद(एस) और जद(यू) में बिखर गई. और यही वह समय था जब नीतीश कुमार को समय के महत्व का एहसास हुआ.
वाजपेयी युग

नीतीश ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार में रेलवे, भूतल परिवहन और कृषि मंत्री के रूप में काम किया. रेल मंत्री के रूप में नीतीश ने कई सुधार किए. केंद्र में वाजपेयी सरकार के सहारे मार्च 2000 में नीतीश पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. 2004 के लोकसभा चुनाव में नीतीश ने दो जगहों से चुनाव लड़ा. वह नालंदा से चुने गए, लेकिन अपने पारंपरिक निर्वाचन क्षेत्र बाढ़ से हार गए.
मोदी का उदय

अक्सर बिहार की राजनीति के चाणक्य के रूप में पहचाने जाने वाले नीतीश कुमार ने पहली बार 3 मार्च, 2000 से 10 मार्च, 2000 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. वह 24 नवंबर, 2005 को बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने. तब से राज्य की कमान उनके हाथों में रही. यही वह समय था जब नीतीश ने गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को बिहार में प्रवेश करने से रोक दिया. नीतीश ने मोदी को गोधरा के बाद के हुए सांप्रदायिक दंगों के लिए दोषी ठहराया. 2009 में आम चुनाव में जदयू ने बीजेपी से कहा कि नरेंद्र मोदी बिहार में प्रचार नहीं कर सकते.

जून 2013 नीतीश कुमार के जीवन का एक और ऐतिहासिक दिन था. नरेंद्र मोदी को प्रमुखता देने के कारण उन्होंने बीजेपी के साथ 17 साल के गठबंधन को खत्म कर दिया. इसके एक दिन बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पर लगे राजनीतिक पाखंड के आरोपों का जवाब देने की कोशिश भी की. इस ब्रेक-अप के जवाब में बीजेपी ने एक वीडियो जारी किया था, जिसमें नीतीश को गुजरात के दंगों के एक साल बाद, 2003 में एक सार्वजनिक समारोह में मोदी की प्रशंसा करते हुए दिखाया गया था. 2017 में नीतीश ने मोदी की वास्तविकता को स्वीकार किया और प्रधानमंत्री के लिए अपनी भरपूर प्रशंसा व्यक्त की.

2015 से 2017 तक की घटनाएं बिहार की राजनीति में युगांतरकारी थीं. इस दौरान नीतीश ने पहले लालू का समर्थन किया और फिर तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से अपना समर्थन वापस ले लिया. 26 जुलाई, 2017 को उन्होंने राजद और कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने बीजेपी-एनडीए के समर्थन से छठी बार सीएम पद की शपथ ली.

नीतीश कुमार इस रफ्तार से राजनीतिक स्थितियों को भांपते हैं कि उनके दुश्मन या मित्र उनके रूप को वर्णित करने में असमर्थ नजर आते हैं. बिहार चुनाव प्रचार के दौरान तेजस्वी यादव ने कहा था कि नीतीश थक गए हैं, जिस पर जेडीयू ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पार्टी के बॉस हमेशा सक्रिय रहते हैं. हो सकता है, यह बीजेपी के लिए एक परोक्ष चेतावनी रही हो. बीजेपी ने जदयू को खुश करने के लिए खुद को लोजपा के चिराग पासवान से दूर रखा. आज नीतीश के इतिहास को देखते हुए बीजेपी को शायद ही कोई हैरानी हुई होगी. राजद और कांग्रेस को भी अब सतर्क रहना होगा.

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