उपचुनाव में हार के बाद हिमाचल भाजपा में उभरे मतभेद, अंतर्कलह को हार की वजह बता रहे नेता

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हिमाचल प्रदेश में हुए उपचुनावों में बीजेपी की हार के बाद से प्रदेश में पार्टी के भीतर ही लगातार सवाल उठ रहे हैं। 2 नवंबर को आए नतीजों में भाजपा फतेहपुर, अर्की और जुब्बल-कोटखाई विधानसभा उपचुनावों के साथ-साथ मंडी लोकसभा सीट भी हार गई थी। इस हार के बाद से हिमाचल बीजेपी में आरोप-प्रत्यारोप का खेल जारी है। मंडी में हार को लेकर पार्टी का मानना ​​है कि पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की जुलाई में मौत के बाद सहानुभूति लहर के कारण उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह जीती हैं। इन तमाम कारकों के साथ ही देश में बढ़ती महंगाई दर को भी हार की मुख्य वजहों में गिना जा रहा है। हिमाचल बीजेपी नेताओं का मानना है कि हमने कांग्रेस से कुछ सीटें छीनने का मौका गंवा दिया।

वोट शेयर घटने से भी परेशान है बीजेपी

बीजेपी हार के साथ ही वोट शेयर में कमी से भी परेशान है। फतेहपुर सीट की बात करें तो 2017 विधानसभा में बीजेपी को 49 फीसद वोट मिले थे जो घटकर 32 फीसद पर पहुंच गए हैं। इसी तरह जुब्बल-कोटखाई और अर्की विधानसभा सीटों पर भी बीजेपी के वोट फीसद में कमी हुई है। मंडी लोकसभा सीट की बात करें तो बीजेपी का वोट शेयर 69 फीसद से घटकर 48 फीसद पर पहुंच गया है।

टिकटों के वितरण को लेकर भी उठा सवाल

हिमाचल भाजपा के नेताओं के अनुसार, करारी हार का सबसे प्रमुख कारण ‘टिकटों के वितरण में आलाकमान द्वारा लिया गया एकतरफा फैसला’ था। हिमाचल बीजेपी हार के कारणों की समीक्षा करने की प्रक्रिया में है। पार्टी का मानना है कि तीन विधानसभा सीटों पर सही उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया गया क्योंकि पार्टी ने वंशवाद की राजनीति से बचने का फैसला किया था।

वंशवाद के आरोपों से बचने की कोशिश पड़ गई भारी?

हिमाचल भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने एक वेबसाइट से बात करते हुए बताया है कि आलाकमान ने निर्णय लिया था कि वंशवाद की राजनीति के आरोपों के कारण परिवार के सदस्यों को टिकट आवंटित नहीं किया जाएगा। यही कारण है कि चेतन ब्रगटा को पार्टी का टिकट नहीं दिया गया। हिमाचल बीजेपी के उपाध्यक्ष कृपाल परमार ने भी उम्मीदवारों के चयन के मानदंड पर जोर देते हुए दावा किया कि यह हाल के वर्षों में मनमाना हो गया है।

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