कृषि कानून: नए कृषि कानूनों के पक्ष में थे 85% किसान, … तो क्या मोदी सरकार किसानों का मूड भांपने में फेल कर गई?
नए कृषि कानूनों पर गठित सुप्रीम कोर्ट की समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक हो गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 85.7 फीसदी यानी ज्यादतर किसान नए कृषि कानूनों (Farm Laws) के पक्ष में थे। यह जानकारी चौंकाने वाली है।
इससे यह साबित हुआ है कि कृषि क्षेत्र में सुधार (Agriculture Reforms) की सरकार की कोशिशों का सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए विरोध किया गया। सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार किसानों का असल मूड भांपने में नाकाम रही?
एक साल से ज्यादा चला था आंदोलन
सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के बॉर्डर इलाके में हजारों किसान (Farmers Protest) एक साल से ज्यादा समय तक डटे रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीनों कानूनों को वापस लेने (Repeal of Agri Laws) के ऐलान के बाद यह आंदोलन खत्म हुआ।
सुप्रीम कोर्ट की समिति की रिपोर्ट से सचाई सामने आई
कृषि कानूनों पर बनी समिति की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जा चुकी है। सोमवार को समिति के सदस्य अनिल घनवट ने इस रिपोर्ट के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि सिर्फ 13.3 फीसदी किसान ही इन कानूनों के विरोध में थे। इससे जाहिर होता है कि सिर्फ मुट्ठीभर लोग इन कानूनों का विरोध कर रहे थे। वे खुद को देशभर के किसानों का प्रतिनिधि बता रहे थे। इस आंदोलन में उत्तर प्रदेश के किसान नेता राकेश टिकैट की बड़ी भूमिका थी।
61 किसान संगठन कृषि कानूनों के पक्ष में थे
धनवट ने यह भी दावा किया है कि 71 में से 61 किसान संगठन इन कानूनों के पक्ष में थे। उनकी जानकारियां चौंकाने वाली हैं। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से तीन बार इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की गई थी। लेकिन ऐसा नहीं होने पर वह सबके सामने इस रिपोर्ट का जानकारियां रख रहे हैं। हालांकि, समिति के दो अन्य सदस्य इकोनॉमिस्ट अशोक गुलाटी और कृषि मामलों के जानकार प्रमोद जोशी इस दौरान मौजूद नहीं थे।
प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था
पिछले साल दिसंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था। इसके बाद इन कानूनों का विरोध करने वाले किसान आंदोनल स्थल से लौट गए थे। तब राकेश टिकैत सहित आंदोलन में शामिल नेताओं ने इसे अपनी जीत बताई थी। उन्होंने दावा किया था कि उनके आंदोलन ने आखिरकार सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया।
पांच राज्यों के चुनावों पर पड़ सकता था किसानों के विरोध का असर
तब माना गया था कि फरवरी-मार्च में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनानों को देखते हुए सरकार ने तीनों कानून वापस लेने का फैसला किया है। यह भी माना जा रहा था कि आबादी के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा को इन कानूनों के चलते नुकसान उठाना पड़ सकता है। लेकिन, 10 मार्च को आए पांच राज्यों में से 4 के नतीजें भाजपा के पक्ष में रहे। उत्तर प्रदेश के जिन इलाकों में इन कानूनों को लेकर किसानों के नाराज होने का अनुमान था, वहां भी भाजपा के उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे।