जलवायु परिवर्तन का धान की किस्मों पर बुरा असर, 40 सालों में 1745 में से 350 ही बचाई जा सकी

0

जलवायु परिवर्तन का असर कृषि पर दिख रहा है. क्योंकि इसके प्रभाव के कारण फसलों और सब्जियों की प्रजातियों पर संकट आ रहा है. यही कारण है कि धान की किस्मों में कम होती जा रही है.

ओडिशा के आदिवाली बहुल कोरपु जिले में यह समस्या सामने आ रही है, जहां पर चावल की किस्में बेहद कम हो गई है. क्योंकि पहले यहां पर किसान 1745 किस्मों के चावल की खेती करते थे पर अब किसान केवल 175 किस्मों के धान की ही खेती कर रहे हैं. धान की किस्मों में यह गिरावट पिछले एक दशक में आई है.

कोरापुट जिले में मुख्य तौर पर चावल और बाजरा की खेती अधिक मात्रा में की जाती है. यहां पर इन पारंपरिक फसलों की खेती करने वाले जानकार किसान बताते हैं कि धान की किस्मों में आई कमी के पीछे का प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है. हालांकि अब किसान पारंपरिक धान की किस्मों को संरक्षित करने को लेकर जागरूक हुए हैं और इन किस्मों के संरक्षण के लिए आगे आए हैं. ओडिशा की एक वेबसाइट के मुताबिकजिले के एक किसान ने कहा कि हालांकि पारंपरिक धान की किस्मेों की अपेक्षा किसान हाइब्रीड धान की खेती की तरफ अधिक ध्यान देते हैं. पर हमें उन्हें संरक्षित करने की जरूरत है ताकि ये स्वदेशी उत्पाद विलुप्त न हों.
इस तरह से कम होती गई धान की किस्म

कृषि शोधकर्ता डॉ. प्रशांत परिदा ने कहा कि 1956-60 के दौरान अविभाजित कोरापुट जिले और कालाहांडी जिले में एक सर्वेक्षण के दौरान धान की 1,745 किस्में पाई गईं थी, इसके 40 साल बाद एक और सर्वेक्षण किया गया. डॉ. प्रशांत परिदा ने बताया कि सर्वे के परिणाम निराश करने वाले थे क्योंकि धान की किस्मों की संख्या घटकर 350 पर पहुंच गई थी.हाल ही में, एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) ने कोरापुट जिले में पारंपरिक धान की किस्मों को एकत्र किया था और केवल 141 किस्मों को पाया था जिन्हें फाउंडेशन द्वारा संरक्षित किया गया है.
बदलती जलवायु के कारण हो रहा संकट

दूसरी ओर कृषि शोधकर्ता डॉ. देबल देब ने कहा कि उन्होंने अविभाजित कोरापुट जिले में चावल की 175 प्रजातियों का संरक्षण किया है. परिदा ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में बदलती जलवायु देश में पारंपरिक चावल की खेती के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही है. इसके अलावा, किसान धान की अधिक उपज देने वाली संकर किस्म की खेती करना पसंद करते हैं और सरकार पारंपरिक किस्मों को बढ़ावा नहीं दे रही है. किसानों के अनुकूलन तंत्र में सुधार के लिए पारंपरिक चावल की भूमि को संरक्षित और गुणा करने की आवश्यकता है. हम इन देशी किस्मों के माध्यम से अधिक उपज देने वाली किस्मों का विकास कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ये भी पढ़ें