जैसा बीज बोआ कनाडा ने अब बैसा ही काट रहा है


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कनाडा ने जैसे बीज बोआ था अब बैसा ही काट रहा जब कोई देश जब अपना अयोग्य मुखिया चुनता है तो फिर उसकी गाड़ी पटरी से उतर जाती है। विकास की रफ्तार थम जाती है, समाज में सद्भाव नहीं रहता और मौजूदा समस्याओं से निपटने में मुल्क नाकाम रहता है।जब तक नागरिकों को इस हकीकत का पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प का उदाहरण सामने है। शी जिनपिंग जिस रास्ते पर अपने राष्ट्र को ले जा रहे हैं, वह भी एक तरह से आत्मघाती है। पाकिस्तान के कई शासक अपनी जिद और स्वार्थ के चलते वहां के राष्ट्रीय हितों के साथ खिलवाड़ करते रहे हैं। कुछ-कुछ इसी तर्ज पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो काम कर रहे हैं। वे अपने देश में नाकारा प्रधानमंत्री के तौर पर पहचान बना चुके हैं और अब कनाडा में ही उनका व्यापक विरोध शुरू हो गया है। अपनी असफलताओं से ध्यान बंटाने के लिए ट्रूडो उन हरकतों पर उतर आए हैं, जो अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में गरिमावान नहीं मानी जातीं।
ताजा घटनाक्रम के चलते कनाडा ने भारतीय दूतावास के राजनयिक पवन कुमार राय को निष्कासित कर दिया है। ( जवाबी कार्रवाई में भारत ने भी कनाडा के एक राजनयिक को देश छोड़ने का आदेश दिया है)। कनाडा की ओर से कहा गया है कि जून में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद जांच के लिए यह जरूरी हो गया था। निज्जर खालिस्तान समर्थक थे और भारत में आतंकवादी समूहों को उकसाते थे। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में एक गुरुद्वारे के सामने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी। जांच अभी जारी है और जस्टिन ट्रूडो साफ कहते हैं कि इसके पीछे भारत का हाथ है। अपनी संसद में उन्होंने कहा, ”हमारी जमीन पर कनाडाई नागरिक की हत्या के पीछे विदेशी सरकार का होना नामंजूर है। यह हमारी संप्रभुता का उल्लंघन है। उन नियमों के विरुद्ध है, जिसके तहत लोकतांत्रिक समाज चलते हैं।” इस भाषण का समर्थन कर सकते हैं, लेकिन जस्टिन ट्रूडो को बताना होगा कि कनाडाई नागरिक उनके जैसे ही संप्रभु और आजाद लोकतांत्रिक देश भारत को तोड़ने की साजिश में शामिल क्यों होते हैं? यह भी पूछा जाना चाहिए कि कनाडाई निवासी भारतीय दूतावास पर हमले क्यों करते हैं? यह भी सवाल है कि कनाडाई सिख, अन्य कनाडाई नागरिकों के पूजा स्थलों पर हमले क्यों करते हैं? तब कनाडा के आजाद लोकतांत्रिक समाज की अवधारणा कहां गुम हो जाती है? पूछा जाना चाहिए कि वर्षों तक कनाडा की धरती से जगजीत सिंह चौहान ने भारत के खिलाफ खालिस्तानी आंदोलन कैसे चलाया? क्या यह एक संप्रभु राष्ट्र का दूसरे संप्रभु राष्ट्र के विरुद्ध षड्यंत्र नहीं था? भारत में तब इंदिरा गांधी जैसी सर्वशक्तिमान नेत्री हुआ करती थीं। उस समय जगजीत सिंह चौहान को पूरी स्वतंत्रता क्यों कनाडा देता रहा? कनाडा और अमेरिका पाकिस्तान के रास्ते पंजाब के उग्रवादियों को हथियार भेजते रहे हैं। यह तथ्य छिपा नहीं है। जस्टिन ट्रूडो से जानने का हिंदुस्तान को हक है कि कनाडाई नागरिकों ने इंडियन एयरलाइंस के विमान में धमाका किया था, जिससे 329 बेकसूर मुसाफिर मारे गए। इस मामले में दो कनाडाई आतंकवादी रिहा कर दिए गए थे। कुछ की हत्या हो गई थी। एक को झूठी गवाही का दोषी माना गया था। तब किसी के विरुद्ध वहां की सरकार ने कार्रवाई क्यों नहीं की? उस समय कनाडा को भारत की संप्रभुता की चिंता क्यों नहीं हुई? भारत के इन सवालों का कनाडाई प्रधानमंत्री के पास कोई उत्तर नहीं होगा, लेकिन उन्हें विश्व समुदाय को यह जवाब जरूर देना होगा कि उनके लोकतंत्र में नागरिकों के साथ दो तरह के व्यवहार क्यों किए जाते हैं? जिस लोकतंत्र की दुहाई वे देते हैं, वह सिर्फ उन्हीं पर लागू क्यों होता है? जब वे कहते हैं कि भारत कनाडा के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है तो वे भूल जाते हैं कि किसान आंदोलन के दरम्यान उन्होंने कैसे बयान दिए थे।
जस्टिन ट्रूडो इस बयान तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि भारत के साथ मुक्त व्यापार की दिशा में बढ़े कदम भी वापस खींच लेते हैं। यह निर्णय जस्टिन ट्रूडो ने समूह – बीस की बैठक के दौरान भारतीय पक्ष की ओर से खालिस्तानी आंदोलन को कनाडा की सरकार के समर्थन का मुद्दा उठाए जाने के फौरन बाद लिया। उनका विमान खराब हो गया। उन्होंने सद्भावनापूर्वक भारतीय विमान उपलब्ध कराने की पेशकश को ठुकरा दिया। वे रूठे हुए दो दिन तक होटल में बैठे रहे। जब उनके विमान को ठीक करने वाला मैकेनिक कनाडा से आ गया और उसने विमान ठीक कर दिया तो जस्टिन कनाडा गए। उनके जाते ही वहां का वाणिज्य मंत्रालय औपचारिक ऐलान करता है कि द्विपक्षीय उन्मुक्त व्यापार की बातचीत रोक दी गई है। यकीनन यह जस्टिन की अपरिपक्वता और कूटनीतिक नासमझी का नमूना है। क्या कनाडा के प्रधानमंत्री भूल गए कि भारत में उनके देश की 600 से अधिक कंपनियां कारोबार कर रही हैं? दोनों मुल्कों के बीच पिछले साल चार अरब डॉलर का आयात और इतना ही निर्यात हुआ। यह बंद होने से भारत तो झटके को बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन सिर्फ चार करोड़ की आबादी वाले कनाडा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है।
भारत की जनसंख्या का केवल तीन फीसदी आबादी वाला देश भारत को आंखें दिखा रहा है तो इसके पीछे किसी न किसी तीसरी ताकत का हाथ होने की आशंका नकारा नहीं जा सकती। क्या भूल जाना चाहिए कि अमेरिकी रवैया भारत की कश्मीर नीति के विरोध में रहा है। राष्ट्रपति जो बाइडेन तथा उपराष्ट्रपति कमला हैरिस इस मुद्दे पर हिंदुस्तान के कट्टर आलोचक रहे हैं। पंजाब और कश्मीर के आतंकवादियों को बरास्ते पाकिस्तान कनाडा तथा अमेरिकी मदद मिलती रही है। ऐसे में कनाडा का यह व्यवहार अप्रत्याशित नहीं है। भारत के लिए यह अतिरिक्त सावधानी का समय है।