कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का निधन, गुर्जर आरक्षण आंदोलन के अगुवा जिनके एक इशारे पर थम जाता था राजस्थान, किरोड़ी सिंह बैंसला के आदेश पर 2008 में गुर्जरों ने किया था प्रदेश का चक्काजाम, वसुंधरा राजे को छोड़नी पड़ी मुख्यमंत्री की कुर्सी
जयपुर, राजस्थान 31 मार्च 2022 (नवीन चन्द्र पोखरियाल)
राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन के अगुवा और गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने 84 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। बैंसला पिछले लंबे समय से सांस की बीमारी से जूझ रहे थे। कर्नल किरोड़ी सिंह के निधन की पुष्टि उनके बेटे विजय बैंसला ने की जिनके पास वर्तमान में गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति की कमान है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का अंतिम संस्कार टोडाभीम के मुंडिया गांव में किया जाएगा। बैंसला के निधन पर सीएम गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सहित राज्य के कई नेताओं ने शोक व्यक्त किया है।
जब भी गुर्जर आरक्षण आंदोलन का इतिहास लिखा जाएगा किरोड़ी बैंसला का नाम सबसे ऊपर दर्ज होगा। सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद गुर्जरों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले बैंसला के एक इशारे पर राजस्थान की सड़क और रेल जाम हो जाती थी। पिछले दो दशकों में कई बार गुर्जर आरक्षण आंदोलन सरकारों के गले की फांस बना है।
2008 में, बैंसला ने गुर्जर समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल करने के लिए एक बड़े आंदोलन ने देश भर का ध्यान आकर्षित किया था। उस दौरान राजस्थान में रेल और सड़क जाम कर दिए गए थे। गुर्जर समुदाय के इस आंदोलन में हुई पुलिस फायरिंग में लगभग 70 लोगों की मौत हुई थी।
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला राजस्थान के गुर्जरों के लिए अलग से एमबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत गुर्जरों को सरकारी नौकरियों में 5 फीसदी आरक्षण दिलवाने में सरकार को झुकाने में कामयाब रहे। आपको बता दें कि इससे पहले राज्य का गुर्जर समुदाय ओबीसी में आता था लेकिन बैंसला के आंदोलन के बाद एमबीसी में शामिल किया गया।
मात्र 317 वोट से हारे थे बैंसला पहला चुनाव
गुर्जर आंदोलन के बाद किरोड़ी सिंह बैंसला पूर्वी राजस्थान की राजनीति के एक नए सितारे के रूप में उभरे। लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने उन्हें टोंक- सवाईमाधोपुर लोससभा सीट से उम्मीदवार बनाया लेकिन वह कांग्रेस के नमोनारायण मीणा के सामने 317 वोटों से चुनाव हार गए थे। चुनाव हारने के कुछ समय बाद ही बैंसला ने बीजेपी छोड़ दी। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान बैंसला फिर से बीजेपी में शामिल हो गए थे लेकिन सक्रिय राजनीति से दूरी बनाकर रखी।
गिर गई थी वसुंधरा राजे सरकार
गुर्जर आऱक्षण की आग साल 2008 में सबसे उग्र तरीके से भड़की। इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को समुदाय के आंदोलन के चलते काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। 2008 में गुर्जर समाज के लोग हजारों की तादाद में रेल की पटरियों पर आ गए और राजस्थान को रेल नेटवर्क से काट दिया था। आंदोलन के बाद नतीजा यह हुआ कि 2008 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और राजे की कुर्सी चली गई।
2008 के गुर्जर आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में 70 से अधिक गुर्जर समाज के लोगों की जान गई थी। वसुंधरा सरकार के जाने के बाद सीएम गहलोत आए और गुर्जरों से बातचीत की। आखिरकार गहलोत सरकार ने गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति की मांगों का स्वीकर किया। हालांकि समुदाय का कहना है कि उनकी कुछ मांगे आज भी अधूरी है।
सिपाही से कर्नल तक का सफर
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का जन्म राजस्थान के करौली जिले के मुंडिया गांव में हुआ था। गुर्जर समुदाय से आने वाले किरोड़ी सिंह ने अपने कैरियर की शुरुआत शिक्षक के तौर पर की थी लेकिन पिता के फौज में होने के कारण उनका रुझान फौज की तरफ हो गया।उन्होंने भी सेना में जाने का मन बना लिया। बैंसला शुरूआती दौर में सेना में सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए थे। बैंसला सेना की राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए जहां उन्होंने सेना में रहते हुए 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बहादुरी का परिचय दिया।
किरोड़ी सिंह बैंसला एक समय में पाकिस्तान में युद्धबंदी भी रहे हैं। कहा जाता है कि उन्हें दो उपनामों से भी जाना जाता है, सीनियर्स उन्हें ‘जिब्राल्टर का चट्टान’ और साथी कमांडो ‘इंडियन रेम्बो’ कहते थे।सेना में एक सिपाही के तौर पर शुरूआत करने वाले बैंसला कर्नल की रैंक तक पहुंचे।
बैंसला के चार संतान हैं, उनकी एक बेटी रेवेन्यु सर्विस और दो बेटे सेना में हैं और एक बेटा निजी कंपनी में कार्यरत है। बता दें कि बैंसला की पत्नी का निधन पहले ही हो चुका है और वे अपने बेटे के साथ हिंडौन में रहते थे।
सेना के बाद गुर्जर आंदोलन से जुड़े
सेना से रिटाटर होने के बाद किरोड़ी सिंह राजस्थान लौट आए और गुर्जर समुदाय के अधिकारों की बात उठाने लगे।आंदोलन के दौरान कई बार उन्होंने रेल रोकी, पटरियों पर धरना दिया। आंदोलन को लेकर बैंसला पर कई तरह के आरोप भी लगे। गुर्जर आरक्षण आंदोलन में अब तक 70 से अधिक लोगों की मौत भी हो चुकी है। किरोड़ी सिंह कहते थे कि उनके जीवन को मुगल शासक बाबर और अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन, दो लोगों ने ही प्रभावित किया है।