नंदी का आशीर्वाद लिये बिना भक्त मेरा आशीर्वाद नही ले पायेगे- भगवान शिव कहते हैं; उनके पास मेरी सारी शक्तियां और मेरी सुरक्षा है

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चंडीगढ़ (आज़ाद वार्ता)

रावण, नंदी, या भगवान विष्णु – सबसे परम शिव-भक्त कौन थे? भगवान राम और लंका के राजा रावण में से कौन भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त था?  रामस्य ईश्वर: रामेश्वर: अर्थात् राम के ईश्वर # “करिहउँ इहाँ शंभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना।।
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। शिव समान प्रिय मोहि न दूजा।। “‘रामचरितमानस /उत्तरकांड / 6-2’ # राम: ईश्वर: यस्य स: रामेश्वर: अर्थात् राम हैं ईश्वर जिसके । “तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अनँग आराती॥” ‘रामचरितमानस /बालकांड / दोहा संख्या/ 108’

शिव ने सारा विष अपने हाथ में ले लिया और उसे पी लिया – नंदी नीचे से गिरा विष पीता है। & विष्णु ने कमल के प्रतिस्थापन के रूप में अपनी आंख की पेशकश की, &रावण ने अपना सिर अर्पित किया, आंतों को बाहर निकाला और वीणा बजाया क्योंकि वह शिव का आत्म लिंग चाहता था।

जब हलाहल विष प्रकट हुआ और सृष्टि को धमकी दे रहा था, शिव ने सारा विष अपने हाथ में ले लिया और उसे पी लिया। नंदी, उनके सबसे उत्साही अनुयायी भगवान शिव के मुंह पर जहर फैलते हुए देखते हैं। नंदी नीचे से गिरा विष पीता है। हर कोई हैरान है और सोचता है कि नंदी का क्या होगा।

भगवान शिव कहते हैं, ” नंदी ने मुझे पूरी तरह से आत्मसमर्पण कर दिया है कि उनके पास मेरी सारी शक्तियां और मेरी सुरक्षा है “। शिव के सबसे प्रमुख शिष्य के रूप में, भगवान शिव की पूजा करने से पहले नंदी का आशीर्वाद लेना महत्वपूर्ण है।

विष्णु ने कमल के प्रतिस्थापन के रूप में अपनी आंख की पेशकश की,

रावण ने अपना सिर अर्पित किया, आंतों को बाहर निकाला और वीणा बजाया क्योंकि वह शिव का आत्म लिंग चाहता था।

नंदी ने बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना जहर पी लिया, और परिणाम के बारे में सोचा भी नहीं था

भगवान राम और लंका के राजा रावण में से कौन भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त था?

श्री राम ही भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त हैं। क्या एक अधर्मी भगवान शिव का सच्चा भक्त हो सकता है? बिल्कुल नहीं। रावण ने अपनी शक्तियों का हमेशा दुरुपयोग किया, अधर्म की राह पर चला। दूसरी ओर श्री राम हमेशा धर्म की राह पर चले, धर्म की रक्षा के लिए ही उन्होंने जन्म लिया था। तो महादेव के सच्चे भक्त तो श्री राम ही थें। रावण की भक्ति से महादेव प्रसन्न तो होते थें, लेकिन श्री राम की भक्ति से महादेव प्रसन्न तो होते ही पर साथ ही वे स्वयं श्री राम की भक्ति करने लगते थें, श्री राम इतने महान थें। श्री राम के आराध्य महादेव थें और महादेव के आराध्य श्री राम थें। तमिलनाडु में रामेश्वर ज्योतिर्लिंग है। जब श्री राम से पूछा गया कि रामेश्वर का अर्थ क्या है, तो श्री राम ने कहा- राम के ईश्वर हैं रामेश्वर। तब ज्योतिर्लिंग में से स्वयं शिव जी प्रकट हुए और बोले- मेरे अनुसार रामेश्वर का अर्थ है राम जिसके ईश्वर हैं वह रामेश्वर है। तो यह थीं श्री राम की महानता, तो भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त श्री राम थें, रावण नहीं।

भगवान राम भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त हैं। दानव राजा रावण भी भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था लेकिन केवल भगवान की पूजा करने का मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति अच्छा है, उसे वास्तविक जीवन में इसे लागू करने की आवश्यकता है। भगवान राम के गुण हैं :- वे बलवान, बुद्धिमान और विनम्र आदि हैं। वे अच्छाई के प्रतीक हैं। दूसरी ओर, रावण के गुण हैं:- वह बलवान, बुद्धिमान लेकिन अहंकारी था और बुराई का प्रतीक है। इसलिए हम दशहरा को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते हैं। भगवान राम और दानव रावण दोनों ने युद्ध से पहले भगवान शिव की पूजा की थी, लेकिन भगवान शिव की कृपा हमेशा भगवान राम पर बनी रही। भगवान शिव ने रावण को वरदान दिया क्योंकि वह भोलेनाथ है, बहुत दयालु है और कभी किसी को वरदान देने से इंकार नहीं करते है। जब भगवान राम ने भगवान शिव के सामने हाथ जोड़े, तो भगवान शिव भी भगवान राम के सामने हाथ जोड़कर लौट आए। यह स्वयं हमें बताता है कि भगवान राम भगवान शिव के समान हैं। लेकिन रावण के लिए ऐसा कभी नहीं कह सकते। तो निश्चित रूप से भगवान राम बिना किसी संदेह के महान हैं।

वर्तमान मैं श्रीलंका मैं 70% आबादी सिंहली लोगों की है जो बोद्ध धर्म को मानते है , 20 % आबादी तमिल हिंदुओ की है , शेष अन्य मुस्लिम व ईसाई आबादी है ।  बोद्ध धर्म का बहुत ज़्यादा प्रभाव होने से आज की श्रीलंका की पीढ़ी रावण के बारे मैं बहुत अधिक नहीं जानती है , लेकिन श्रीलंका मैं सभी यह ज़रूर जानते है की रावण जो यहाँ का राजा था वो भारत से सीता माता का अपहरण करके श्रीलंका लाया था। श्रीलंका के त्रिनकोमल्ली क्षेत्र मैं राम और रावण का युद्ध हुवा था। अशोक वाटिका , स्त्रिपुरम, रावण फ़ॉल , सीता अग्नि प्रवेश स्थान आदि वहाँ के रामायण टूर के तहत आने वाली जगहे है , जो स्वयं श्रीलंका सरकार के पर्यटन विभाग की देख रेख मैं है। रावण , महा ज्ञानी , प्रकांड ज्योतिष , आयुर्वेद का जानकार , अति बुद्धिमान और अभिमानी राजा था , ऐसा श्रीलंका वासी मानते है । बीती हर बात का साक्षी है श्रीलंका।

रावण की नाभि में अमृत किसने स्थापित किया था? रावण ने अपनी बहन शूर्पणखा और भाइयाें कुंभकरण तथा विभीषण के साथ ब्रह्मा जी का तप किया था। उससे खुश होकर ब्रह्माजी ने तीनों से वरदान मांगने को कहा। तब विभीषण ने ज्ञान, शूर्पणखा ने सुंदरता और कुंभकरण ने निंद्रा में लीन होने का वर मांगा था। लेकिन रावण ने अमृत और ज्ञान का वरदान मांगा था।अमृत उसने अपनी नाभि में रख लिया था ताकि उसकी मृत्यु न हो सके। रावण के आख्यानों में उसके मर्म स्थानों का उल्लेख मिलता है।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अवतार की महिमा का ज्ञान तो देवताओं और उनके परिजनों को भी नहीं था इनका ज्ञान केवल शिवजी, ब्रह्मा जी, हनुमानजी, महर्षि बाल्मीकि जी, गुरु वशिष्ठ जी और अगस्त्य मुनि जैसे कुछ ऋषियों को ही था यहां तक की शिव जी की पत्नी जगत जननी माता सती (पार्वती माता का पूर्व जन्म ) को भी नहीं था देवता,दानव और संसार के अन्य मानवों की नजर में वो अयोध्या के एक राजकुमार ही थे वनवास के अंतिम सालों के दौरान सभी को पता चलता गया कि भगवान श्री राम अवतार है क्योंकि उन्होंने अपना पूरा अवतरण काल साधारण मनुष्य की तरह ही सुख दुःख के अनुभवों के साथ बिताया रावण वध से पहले स्वंय इन्द्र ने भगवान श्री राम की सहायता के लिए अपना दिव्य रथ भेजा जो उनकी अज्ञानता का ही उदाहण था परंतु मर्यादा पुरषोत्तम ने वहां भी अपनी सौम्यता नही त्यागी यही बात समुद्र पर भी लागू होती हैं वो श्री राम को साधारण मनुष्य ही समझ रहा था पर जब उसे भगवान राम की महिमा का पता लगा तो फिर वो सामने आया। हनुमान जी के तेज के बारे सभी देवी देवता उनके बालपन से ही जानते थे जब उन्होने सूरत को फल समझकर निगल लिया था। भगवान राम की महिमा तो इतनी अपरंपार है कि आज भी कुछ पार्टियां और सैकड़ो नेता उनका नाम लेकर सत्ता मे आ जाते है पर वादे उनके झूठे ही साबित हुए।

हनुमान जी और अंगद दोनों ही समुद्र लाँघने में सक्षम थे, फिर पहले हनुमान जी ने क्यों समुद्र कूदा और अंगद बाद में सुमद्र कूद कर लंका क्यों गए?

अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा॥”

अंगद बुद्धि और बल में हनुमान जी के समान ही है ! समुद्र के उस पार जाना भी उनके लिए बिल्कुल आसान है। किन्तु वह कहते हैं कि लौटने में मुझे संसय है।

बालि पुत्र अंगद और रावण का पुत्र अक्षय कुमार दोनों एक ही गुरु के यहाँ शिक्षा प्राप्त कर रहे थे | अंगद बहुत ही बलशाली थे और थोड़े से शैतान भी थे। वो प्रायः अक्षय कुमार को थप्पड़ मार देते थे जिससे की वह मूर्छित हो जाता था | एक दिन ऐसा ही करने पर गुरु ने क्रोधित होकर अंगद को श्राप दे दिया कि अब यदि अक्षय कुमार को तुमने एक भी थप्पड़ मार दिया तो तुम मर ही जाओगे | इसी कारण वो पहले समुद्र पार नहीं गए और हनुमान जी से जाने को कहा | हनुमान जी गए और उचित व्यवस्था भी करके आये।

पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा॥ आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥4॥

हनुमान जी का पांच मुख वाला विराट रूप यानी पंचमुखी अवतार पांच दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रत्येक स्वरूप में एक मुख, त्रिनेत्र और दो भुजाएं हैं। इन पांच मुखों में नरसिंह, गरुड़, अश्व, वानर और वराह रूप हैं। उत्तर दिशा में वराह मुख जिनसे जीवन में प्रसिद्धि, अपार शक्ति और लंबी उम्र मिलती है। दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख जिनसे व्यक्ति का भय और तनाव समाप्त होते हैं। पश्चिम में गरुड़ मुख जिनसे जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आकाश की तरफ हयग्रीव/अशव मुख, जिनसे व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पूर्व दिशा में हनुमान/वानर मुख जिनसे दुश्मनों पर विजय प्राप्त होती है।

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