धरती से गगन…. साइकिल से चंद्रयान-तीन ,आसान नहीं थी चांद तक हिन्दुस्तान की राह,दस प्वाइंट में समझें चांदा मामा मिशन

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चंडीगढ (आज़ाद वार्ता)

भारत का ‘मून मिशन’ चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक चांद के दक्षिणी छोर पर बुधवार की शाम को लैंड हो गया. चंद्रयान-3 के चांद पर लैंड होते ही भारत उन चार देशों की फेहरिस्त में शामिल हो गया, जो चांद पर सफलतापूर्वक पहुंच चुके हैं.

वहीं, चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है. लेकिन भारत के लिए चांद पर पहुंचने की यह राह इतनी आसान नहीं थी. एक वक्त था, जब भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो साइकिल और बैलगाड़ी से रॉकेट ढोया करता था और आज एक वक्त वह भी है, जहां चंद्रयान-3 की मदद से चांद पर कदम रख भारत विकसित देशों की कतार में खड़ा हो गया है. स्पेस की दुनिया में आजादी के बाद से ही खुद को अन्य विकसित और विकासशील देशों की तरह खड़ा करना भारत के लिए बड़ी चुनौती थी. साल 1962 में पहली बार अंतरिक्ष एजेंसी का गठन किया गया. इसके बाद भारत के लिए अंतरिक्ष संबंधित संसाधन सबसे बड़ी चुनौती थी. इस बीच उस वक्त की एक तस्वीर खूब वायरल होती है, जिसमें वैज्ञानिक साइकिल पर रॉकेट ले जाते हुए नजर आते हैं. 1962 से 2023 तक भारत ने अपने आप को अंतरिक्ष की दुनिया में एक मजबूत देश के तौर पर खड़ा किया है.

दरअसल, मिशन मून की सफलता के लिए भारत को करीब 15 साल इंतजार करना पड़ा. 15 साल की लगातार मेहनत ने बुधवार यानी 23 अगस्त ने इसरो के चंद्रयान-3 ने भारत को चांद पर पहुंचा दिया. इसरो ने चांद पर अपना पहला चंद्रयान-1 साल 2008 में भेजा था. चंद्रयान-1, चंद्रयान-2 से लेकर चंद्रयान-3 की राह में भारत ने असफलताओं के भी दौर देखे. जब चंद्रयान-2 की लैंडिंग असफल रही थी, तब पूरा देश रोया था. मगर इसी इसरो ने चंद्रयान-3 को चांद पर सफलतापूर्वक लैंड कराकर देश को झूमने का मौका दे दिया. तो चलिए 10 प्वाइंट में जानते हैं भारत के मून मिशन की पूरी कहानी.

रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत चंद्रमा पर रोवर उतारने वाला चौथा देश बन गया. चंद्रयान-3 का डेवलेपमेंट फेज जनवरी 2020 में शुरू हुआ था, जिसे साल 2021 में लॉन्च करने की प्लानिंग थी. हालांकि कोरोना महामारी के चलते इस मिशन को आगे बढ़ाने में बहुत देरी हुई.चंद्रयान-3 को बीते 14 जुलाई को एलवीएम-3 हेवी लिफ्ट लॉन्च वाहन पर लॉन्च किया गया था. बीते बुधवार को जो लैंडर चांद पर लैंड हुआ, उसका नाम विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया. विक्रम साराभाई व्यापक रूप से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है.भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की स्थापना साल 1962 में हुई थी. तब इसे भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) कहा जाता था. विक्रम साराभाई उसके चीफ थे. इसके स्थापना के एक साल बाद ही भारत ने पहला रॉकेट लॉन्च किया था. उसके पार्ट्स को साइकिल पर लादकर लॉन्च सेंटर तक पहुंचाया गया था. वह तस्वीर आज भी सोशल मीडिया पर वायरल होती रहती है.पहला रॉकेट 21 नवंबर 1963 को यहीं से लॉन्च किया गया. इसके साथ ही भारतीय स्पेस प्रोग्राम की ऐतिहासिक शुरूआत हुई थी. इसके बाद साल 1969 में 15 अगस्त को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) बनाया गया.चंद्रयान मिशन, जिसे इंडियन लूनर एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें इसरो द्वारा संचालित अंतरिक्ष मिशनों की एक सीरिज शामिल है. पहला मिशन, चंद्रयान-1, 2008 में लॉन्च किया गया था और सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया.भारत की पहली सैटेलाइट का नाम आर्यभट्ट था. जिसे साल 1975 के 19 अप्रैल को लॉन्च किया गया था. प्रसिद्ध खगोलशास्त्री के नाम पर इस सैटेलाइट का नाम आयर्भट्ट रखा गया था. इसे इसरो ने बनाया था और सोवियत संघ ने लॉन्च किया था.भारत का सबसे भरोसेमंद लॉन्च व्हीकल का नाम पोलर सैटेलाइट लॉन्च वीह्कल है. इसे साल 1994 के अक्टूबर महीने में लॉन्च किया गया था. और तब से जून 2017 तक लगातार 39 सफल मिशनों के साथ एक विश्वसनीय लॉन्च वीइकल के रूप में उभरा है. इसके जरिये ही 2008 में चंद्रयान- और 2013 में मंगल ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च किया था.चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर ‘विक्रम’ ने चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए अपेक्षाकृत एक समतल क्षेत्र को चुना. उसके कैमरे से ली गयी तस्वीरों से यह पता चला है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि विक्रम के सफलतापूर्वक चंद्रमा पर पहुंचने के तुरंत बाद ‘लैंडिंग इमेजर कैमरा’ ने ये तस्वीरें कैद कीं. तस्वीरें चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्थल का एक हिस्सा दिखाती हैं. उसने कहा, ‘लैंडर का एक पैर और उसके साथ की परछाई भी दिखायी दी.’चंद्रयान-3 की चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग के बाद अब रोवर मॉड्यूल इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए 14 दिवसीय कार्य शुरू करेगा. उसके विभिन्न कार्यों में चंद्रमा की सतह के बारे में और जानकारी हासिल करने के लिए वहां प्रयोग करना भी शामिल है. ‘विक्रम’ लैंडर के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कर अपना काम पूरा करने के बाद अब रोवर ‘प्रज्ञान’ के चंद्रमा की सतह पर कई प्रयोग करने के लिए लैंडर मॉड्यूल से बाहर निकलने की संभावना है.द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक उतारने की भारत की सफलता पर दुनियाभर में रहने वाले भारतीय प्रवासियों सहित विभिन्न लोगों ने खुशी जतायी है। भारत का चंद्रमा मिशन चंद्रयान-3 बुधवार शाम 6 बजकर चार मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा। इसके साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारने वाला पहला देश बन गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो सहित पूरे भारत को मिशन सफल होने पर बधाई दी.

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