साहबजादे को आनंदपुर साहिब से प्रत्याशी न बनाए जाने से नाराज पूर्व भाजपा मंत्री मदन मोहन मित्तल का अकाली दल मे जाना लगभग तय,दलजीत चीमा से की भेट

आनंदपुर साहिब (सचित गौतम)
साहबजादे को आनंदपुर साहिब से प्रत्याशी न बनाए जाने से नाराज पूर्व भाजपा मंत्री मदन मोहन मित्तल का अकाली दल मे जाना लगभग तय,दलजीत चीमा से की भेट।
जहां एक तरफ अधिकतर सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने पुराने चेहरों पर दांव खेला है, वहीं पर आनंदपुर साहिब से वरिष्ठ भाजपा नेता मदन मोहन मित्तल को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है। शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री रहे मदन मोहन मित्तल की टिकट शीर्ष नेतृत्व ने इस बार फिर काट दी है।
बता दें कि पिछले 2017 के चुनाव में भी भाजपा ने मदन मोहन मित्तल को टिकट न देकर भानुपली निवासी डॉक्टर परमिंदर को दी थी। इस बार फिर भाजपा ने डॉक्टर परमिंदर को ही चुनावी दंगल में उतारा है। मदन मोहन मित्तल चाहते थे कि यदि उन्हें टिकट पार्टी ने नहीं देना है तो न दे, लेकिन उनके बेटे अरविंद को आनंदपुर साहिब से मैदान में उतार दे। लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उनकी एक न मानी। न उन्हें आनंदपुर साहिब से प्रत्याशी बनाया और न ही उनके बेटे को टिकट दी।
भाजपा में ऐसी स्थिति होने और पार्टी द्वारा उन्हें पूरी तरह से नजर अंदाज कर दिए जाने पर अब वह भी कोई दूसरा रास्ता तलाश रहे हैं। टिकट कटने के बाद मित्तल ने भी बगावती सुर उगलने शुरू कर दिए हैं। मित्तल ने टिकट कटने पर भाजपा के ही सहयोगी रहे शिरोमणि अकाली दल के साथ संपर्क साधने शुरू कर दिए हैं। पता चला है कि उन्होंने चंडीगढ़ में अकाली दल के प्रवक्ता डॉक्टर दलजीत चीमा से भी मीटिंग की और अपनी व्यथा सुनाई, लेकिन अकाली दल में भी उन्हें लेने या न लेने का फैसला सुखबीर बादल ही करेंगे।
दो बार मांगा समय सुखबीर नहीं मिले
इसी बीच यह भी पता चला है कि भाजपा के पूर्व मंत्री मदन मोहन मित्तल ने शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल से दो बार मिलने का समय मांगा, लेकिन चुनाव में व्यस्तता के कारण वह उन्हें नहीं मिले। या यूं भी कह सकते हैं कि बड़े बादल के साथ तो उनके संबंध अच्छे रहे हैं, लेकिन छोटे बादल के साथ शायद उनके समीकरण ठीक नहीं है। इसलिए उन्होंने अभी तक मदन मोहन मित्तल से मिलना मुनासिब नहीं समझा। उन्होंने खुद मिलने के बजाय पार्टी के प्रवक्ता डॉक्टर दलजीत चीमा को उनके पास भेज दिया।
राणा से फ्रेंडली मैच की पड़ी मार
सूत्रों से पता चला है कि भाजपा ने मदन मोहन मित्तल को दूसरी बार भी टिकट इसलिए नहीं दिया क्योंकि वह आनंदपुर साहिब से विधायक और प्रदेश विधानसभा में स्पीकर राणा केपी सिंह के साथ फ्रेंडली मैच खेल रहे थे। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेसी होने के बावजूद राणा केपी सिंह ने भी मदन मोहन मित्तल के बेटे को भाजपा की टिकट दिलवाने के लिए अपने स्तर पर प्रयास किए थे, लेकिन बात नहीं बनी। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के पास पहुंची रिपोर्टों के अनुसार कई धंधों में भी दोनों का साझेदारी थी। क्षेत्र में विपक्षी पार्टियां भी कई बार दोनों पर सांझ होने के आरोप लगा चुकी हैं और लगा भी रही हैं। पार्टी ने अपने सर्वे व रिपोर्टों को आधार बनाकर मित्तल व उनके परिवार को दरकिनार किया।
पिछली बार 36 हजार वोट ले गए थे डॉक्टर परमिंदर
पिछले विधानसभा चुनाव में मतदान से मात्र 18 दिन पहले भाजपा ने डॉक्टर परमिंदर सिंह को चुनावी दंगल में उतारा था। मदन मोहन मित्तल की सपोर्ट के बिना ही परमिंदर आंनदपुर साहिब से 36919 मत हासिल किए थे। जबकि राणा केपी सिंह को 60800 मत पड़े थे। हालांकि आनंदपुर साहिब से परमिंदर की हार का मार्जन ज्यादा था, लेकिन वह दूसरे नंबर पर रहे थे। इसे दूसरे अर्थों में यह भी कह सकते हैं कि पिछले बार मदन मोहन मित्तल की सपोर्ट के बिना भी गठबंधन सरकार के खिलाफ लहर के बावजूद 36 हजार वोट पड़े यह भाजपा का कैडर वोट हो सकता है।