खुशखबरी- अब किसान केले के तने से निकलने वाले तेल से कर सकते हैं मोटी कमाई, जानिए सबकुछ

एक अनुमान के अनुसार बिहार (Bihar) में हर साल मात्र केले के आभासी तने से लगभग 2500,000 मीट्रिक टन बायोमास उत्पन्न होता है.
केला उत्पादक किसानों (Farmers) के सामने सबसे बड़ी चुनौती केले के आभासी -तने के इस विशाल बायोमास को मूल्य वर्धित उत्पादों में बदलना है तथा दूसरी चुनौती किसानों को केला के बायोमास से फाइबर (Fiber from Biomass), सैप और अन्य उत्पाद निकालने के लिए किसान को तैयार करना . तीसरी चुनौती पौधों के विकास को बढ़ावा देने वाले के रूप में सैप (केले के आभासी तने से निकला हुवा रस ) (Juice from the virtual stem of the Banana) के उपयोग के लिए किसानों को राजी करना और (कचरे) को कम्पोस्ट में बदलना था .
नई रिसर्च के बारे में जानिए
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्विद्यालय ने कुलपति डॉ. आरसी श्रीवास्तव ने टीवी9 डिजिटल से एक्सक्लूसिव बातचीत में बताया कि युवाओं और किसानों रोजगार के लिए बेहतर विकल्प के लिए कई रिसर्च किया गया है जिसका सुखद परिणाम मिल रहा है. इसके लिए एक टीम बना दी गई.
विश्विद्यालय द्वारा वित्त पोषित परियोजना के अंतर्गत एक कार्य दल बना कर कार्य करना प्रारंभ किया गया. इस परियोजना का प्रधान अन्वेषक डॉ एस के सिंह, प्रोफेसर , प्लांट पैथोलॉजी एवं सह निदेशक अनुसंधान को बनाया एवं डॉ शंकर झा , वैज्ञानिक (मृदा विज्ञानं ) को सह प्रधान अन्वेषक बनाना गया. इस परियोजना के रिजल्ट बहुत ही उत्साहवर्धक रहे. अब आवश्यकता इस बात की है की इस रिजल्ट को किसानों के मध्य ले जा कर उन्हें इसके लिए तैयार किया जाय. इस सन्दर्भ में कार्य प्रारंभ कर दिया गया है.
अब विस्तार से तने से निकलने वाले तेल के बारे में जानते है
- डाक्टर श्रीवास्तव बताते हैं कि शुरू में किसान की मानसिकता को बदलना बहुत मुश्किल कार्य था, उन्हें प्रयोगों द्वारा यह बताना आवश्यक था की केले का आभासी तना सोने की खान है. केले के रस (सैप ) में फसल की वृद्धि के लिए उच्च मूल्यवान पोषक तत्व मौजूद होते हैं. केले के तने का परिवहन श्रमसाध्य होने के साथ-साथ बहुत महंगा भी है. डडॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्विद्यालय में चलाई गई इस परियोजना के परिणाम के लाभ केला उत्पादक किसानों तक पहुचने के लिए आवश्यक है की उन्हें भागीदार बनाया जाय.
- डाक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्व विद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाक्टर एस के सिंह बताते हैं कि केला के आभासी तने से रेशा , सैप एवं खाद बनाने के लिए, केला उगाने वाले क्षेत्र में क्लस्टरों का निर्माण करके केले के आभासी -तने के विशाल अपशिष्ट बायोमास को सर्वोत्तम मूल्य वर्धित उत्पादों में उपयोग करने से केला उत्पादकों को कचरे से अतिरिक्त आय प्राप्त होगा ,केले के आभासी तना के निस्तारण पर होने वाले खर्च की बचत होगा , जैविक तरल उर्वरक और केले के आभासी -तने से वर्मी-खाद या खाद का उपयोग करके रासायनिक उर्वरक पर होने वाली लागत को कम किया जा सकता है ,केले के आभासी -तने से जैविक तरल उर्वरक और वर्मीकम्पोस्ट/खाद का उपयोग करके मिट्टी की उर्वरता बढ़ाया जाता है ,कुटीर उद्योग के माध्यम से ग्राम स्तर पर रोजगार सृजन किया जा सकता है. आभासी तने का लंबी दूरी का परिवहन आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं है. केले के आभासी तने (pseudostem ) को आर्थिक रूप से संसाधित करना और स्थानीय ग्राम स्तरों पर ही फाइबर निकालना ज्यादा उचित होगा.
- केला का सैप (बनाना स्यूडोस्टेम सैप) को केले के स्यूडोस्टेम के बाहरी आवरण से निकाला जाता है. आभासी तने से तुरंत निकलने के बाद सैप रंगहीन साफ पानी जैसा दिखाई देता है. हालांकि, समय बीतने के साथ, इसमें मौजूद फेनोलिक के ऑक्सीकरण के कारण यह धीरे-धीरे हल्के खाकी रंग में बदल जाता है. चूंकि सैप में सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम जैसे खनिज होते हैं, इसलिए इसका उपयोग खिलाड़ियों के लिए ऊर्जा बूस्टर के रूप में या समान अनुप्रयोगों के लिए ऊर्जा पेय के रूप में किया जा सकता है. जहां तक टेक्सटाइल एप्लिकेशन का संबंध है, सैप का उपयोग प्राकृतिक डाई, मॉर्डेंट, यूवी प्रोटेक्टिव और फ्लेम रिटार्डेंट फॉर्मूलेशन के लिए एक सक्रिय संघटक के रूप में किया जा सकता है. इस विषय पर उपलब्ध साहित्य के अनुसार सैप का उपयोग औषधीय उद्देश्य के लिए यथा रक्तचाप, मधुमेह, गठिया, त्वचा पोषण को कम करने और डंक या काटने की बीमारी के रूप में भी किया जा सकता है.
- रेशे (फाइबर) निकलने के दौरान मशीन में एकत्रित स्कूचर के साथ साथ सैप को मैन्युअल रूप से निचोड़कर अलग किया जाता है. औसतन एक हेक्टेयर केले के बागान से लगभग 7,000 से 10,000 लीटर तक रस (सैप)प्राप्त होता है. एक रेशा निकलने वाली मशीन से लगभग एक दिन में एक मशीनों से एक दिन में लगभग 250 से 300 लीटर सैप निकल जाता है.
- केले से रेशा निकलने वाली मशीन द्वारा स्यूडोस्टेम से फाइबर निष्कर्षण के दौरान स्कूचर के साथ साथ तरल पदार्थ (सैप) प्राप्त होता है, जिसमे पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों जैसे एन, पी, के, सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ-साथ साइटोकिनिन और जिबरेलिक एसिड (जीए) आदि जैसे हार्मोन का बहुत अच्छा स्रोत है. इसे तरल उर्वरक के रूप में या तो ड्रिप सिस्टम के माध्यम से केला या केले जैसी फसलों में यथा गन्ना, पपीता, प्याज, पत्तेदार सब्जी में प्रयोग किया जा सकता है , इसके प्रयोग से 10-15 प्रतिशत उपज में वृद्धि दर्ज किया गया है. इसके साथ साथ उर्वरक की 20 से 40 प्रतिशत संस्तुति उर्वरकों की मात्रा में भी कमी किया जा सकता है. इसे सीधे किसान खुद अपना सकते हैं. जैविक खेती में केला से प्राप्त इस तरल के प्रयोग से पौधों को मुख्य तत्वों के साथ साथ सुक्ष्म तत्वों की भी आपूर्ति हो जाती है. पूर्णतया प्राकृतिक उत्पाद होने के कारण यह पर्यावरण के लिए खतरनाक नहीं है.
- डॉ.राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्विद्यालय में डॉ शंकर झा , वैज्ञानिक मृदा विज्ञानं द्वारा सैप के रासायनिक विश्लेषण में जो दर्शाते है की सैप का उपयोग तरल उर्वरक के रूप में किया जा सकता . इस सम्बंध में अनुसंधान डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा , बिहार के साथ साथ नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, नवसारी गुजरात में भी किया गया जिसका निष्कर्ष बहुत ही संतोष प्रद रहा.