हिमाचल उपचुनाव: अंदरूनी कलह और महंगाई ने डुबोई भाजपा की लुटिया

हिमाचल प्रदेश में हुए उपचुनाव में भाजपा क्लीन बोल्ड हो गई। मंडी लोकसभा सीट, अर्की, फतेहपुर और जुब्बल-कोटखाई विधानसभा हलकों में भाजपा की लुटिया महंगाई और अंदरूनी कलह ने डुबो दी।
चंडीगढ़ (आज़ाद वार्ता)
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के शासन में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री के गृह राज्य हिमाचल को लगा यह झटका छोटा नहीं है। स्वाभाविक है कि चुनावी साल से ठीक पहले मुख्यमंत्री भी अंदर और बाहर के सभी विरोधियों के निशाने पर होंगे। संगठन के कई नेताओं को भी मोदी, शाह और नड्डा को हिसाब देना होगा।
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने इन उपचुनाव को मुख्यमंत्री के जिम्मे छोड़ दिया, जिससे यह उनकी प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गए। जैसे ही टिकट बंटे, शुरू से ही भाजपा कुछ सीटों पर कमजोर मानी जाने लगी थी। इस पर भी प्रदेश भाजपा डबल स्क्वेयर इंजन के बूते आत्मविश्वास में थी। केंद्र और हिमाचल में अपनी सरकारें, दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री के होने को भाजपा के नेता डबल स्क्वेयर इंजन की तरह प्रचारित करती रही। जुब्बल-कोटखाई में मुख्यमंत्री पहले पूर्व मंत्री नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा को प्रचार के लिए हरी झंडी दे चुके थे कि अचानक उनकी कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री सुरेश भारद्वाज की शाह-नड्डा से मुलाकात के बाद वंशवाद की तलवार से यह टिकट कट जाता है।
इससे वहां भाजपा दो हिस्सों में बंटकर एकजट हुई कांग्रेस का मुकाबला करती है। नतीजे मैं यहां भाजपा प्रत्याशी नीलम सरैईक की बुरी तरह से जमानत तक जब्त हो गई। मंडी लोकसभा सीट पर भी जयराम ठाकुर के पास महेश्वर सिंह, निहाल चंद शर्मा जैसे विकल्प थे। पर यहां भी भाजपा का विवेक चूक जाता है। यहां नाराज होकर घर बैठे पूर्व मंत्री अनिल शर्मा, रूप सिंह जैसे नेताओं को मुख्यमंत्री फील्ड में नहीं उतार पाए। अर्की मैं भाजपा की बगावत शुरू से ही साफ थी, मगर सीएम ही नहीं, बल्कि केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी यहां भाजपा के रूठों को प्रचार में उतारने में नाकाम रहे। यही हाल फतेहपुर का रहा। वहां तो भाजपा ने पूर्व मंत्री और लोकसभा सांसद राजन सुशांत को अनदेखा करके भी भूल की तो वहीं पूर्व राज्यसभा सांसद कृपाल परमार टिकट न मिलने से मायूस रहे।
रही सही कसर महंगाई ने पूरी कर दी। उपचुनाव के बीच ही प्याज, टमाटर, गैस, सीमेंट, निर्माण सामग्री, पेट्रोल-डीजल आदि के रेट बढ़ते ही रहे। इससे कांग्रेस को एक बड़ा मुद्दा मिल गया। छह बार के पूर्व सीएम स्वर्गीय वीरभद्र सिंह मंडी, जुब्बल-कोटखाई और अर्की से खुद भी चुनाव जीतते आए थे। फतेहपुर में पूर्व मंत्री सुजान सिंह पठानिया लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके थे। चौदह साल से भाजपा वहां अपना खाता ही नहीं खोल पाई थी और इस बार के उत्साह में भी चूक गई। भाजपा की अपनी रणनीति में भी चूक रही तो इस बार बहुत से मुद्दे भी रहे। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने वाली भाजपा की इस बार महंगाई और अंदरूनी कलह के झटकों से चारों सीटों पर लुढ़क गई।