इतिहास गवाह- अकाली दल के सिवाय पंजाबियों ने किसी क्षेत्रीय दल को नहीं अपनाया,चुनौती: कैप्टन ने बनाई नई पार्टी

चंडीगढ़ (आज़ाद वार्ता)
पंजाब प्रदेश प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू से कड़वाहट भरी ‘जंग’ के बाद कांग्रेस से किनारा कर पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह सूबे में नई पार्टी स्थापित करने जा रहे हैं।
निश्चित तौर पर यह क्षेत्रीय पार्टी होगी। इस नई पार्टी को पंजाब की राजनीति में स्थापित हो चुकी क्षेत्रीय पार्टियों अकाली दल, आम आदमी पार्टी के साथ ही राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के बराबर खड़ा करना कैप्टन के लिए मुख्य चुनौती होगी। इतिहास इस बात का गवाह है कि पंजाब की राजनीति में अकाली दल ही क्षेत्रीय पार्टी के रूप में अपना स्थान कायम कर पाया अन्यथा कई दिग्गजों ने पंजाब में अपनी पार्टी खड़ी करने की कोशिश की लेकिन अंतत: उनको उसका विलय राष्ट्रीय पार्टी या अकाली दल में करना पड़ा है।
टोहड़ा की पार्टी
अकाली राजनीति के दिग्गज माने जाने वाले गुरचरण सिंह टोहड़ा भी अकाली दल बादल के मुकाबले क्षेत्रीय पार्टी नहीं खड़ी कर पाए। 2001 में जत्थेदार गुरुचरण सिंह टोहड़ा ने बादल के विरुद्ध विद्रोह कर सर्वहिंद अकाली दल का गठन किया था। 2004 में टोहड़ा ने बादल के साथ समझौता कर अपने दल का विलय शिअद (बादल) में कर दिया था। इसके अलावा पंजाब में अकाली दल 1920, अकाली दल डेमोक्रेटिक, अकाली दल मान, अकाली दल टकसाली भी बनाए गए लेकिन यह दल अकाली दल बादल के मुकाबले कहीं नजर नहीं आते हैं।
जगमीत बराड़ ने कई बार कोशिश की, अब अकाली दल का हिस्सा 1992 में पीएम पीवी नरसिम्हा राव से मतभेद के बाद एनडी तिवारी व अर्जुन सिंह ने कांग्रेस (तिवारी) बनाई तो जगमीत बराड़ उसमें शामिल हो गए थे। इसके बाद 1996 में बराड़ ने अपनी पार्टी लोक युद्ध मोर्चा बनाई। कुछ समय बाद कांग्रेस में लौट गए। 2005 से 2012 तक कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य और गोवा के इंचार्ज भी रहे। 5 जनवरी 2015 को कांग्रेस छोड़ी और 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस जॉइन कर ली। चुनावी सफलता नहीं मिलने पर तृणमूल कांग्रेस भी छोड़ दी। अब शिअद में हैं।
पंजाब एकता पार्टी, कांग्रेस में हो गया विलय
सुखपाल सिंह खैहरा की पंजाब एकता पार्टी का कांग्रेस में विलय हो चुका है। आम आदमी पार्टी से सस्पेंड चल रहे विधायक सुखपाल सिंह खैहरा ने करीब पांच वर्षों के बाद घर वापसी की। खैहरा के साथ ‘आप’ के मौड़ से विधायक जगदेव सिंह कमालू और भदौड़ से विधायक पीरमल सिंह ने भी कांग्रेस का हाथ थाम लिया, क्योंकि पंजाब एकता पार्टी अपने आपको क्षेत्रीय दल के रूप में स्थापित नहीं कर पा रही थी। आम आदमी पार्टी ने सुखपाल सिंह खैहरा और उनके करीबी विधायक पीर मल सिंह और मास्टर जगदेव सिंह को 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले सस्पेंड कर दिया था। इसके बाद खैहरा ने अपनी पंजाब एकता पार्टी बनाई थी, जिसके बैनर तले खैहरा बठिंडा से लोकसभा का चुनाव लड़े।
लोक इंसाफ पार्टी सिर्फ बैंस बंधुओं तक सीमित लोक इंसाफ पार्टी लुधियाना तक ही सीमित रही है। बैंस बंधुओं ने लोक इंसाफ पार्टी का गठन किया था लेकिन इस पार्टी की टिकट पर दोनों बैंस भाई ही विधानसभा तक पहुंच पाए।
मनप्रीत बादल ने बनाई थी पीपीपी…अब कांग्रेस का हिस्सा
मनप्रीत सिंह बादल ने 1995 गिद्दड़बाहा से पहली बार उपचुनाव जीता था जब राज्य में बेअंत सिंह की सरकार थी। वह इसके बाद 1997, 2002 और 2007 में भी गिद्दड़बाहा के विधायक चुने गए। 2011 में अपने चचेरे भाई सुखबीर बादल से विवाद के कारण उन्होंने अकाली दल को अलविदा कह दिया और पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब (पीपीपी) का गठन किया लेकिन पार्टी 2012 के विधानसभा चुनावों में 6 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई। इसके बाद मनप्रीत बादल ने पीपीपी का विलय कांग्रेस में कर दिया।
भाजपा साथ आई तो कैप्टन को मिल सकता है फायदा
पंजाब में भाजपा का वोट प्रतिशत 8 फीसदी तक है। कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब लोक कांग्रेस का गठन कर कांग्रेस से टिकट करने वाले विधायकों को अपने पाले में ला सकते हैं और अगर भाजपा उनके साथ खड़ी हो जाती है या पार्टी का गठबंधन भाजपा से हो जाता है तो पंजाब में शहरी वर्ग में गठबंधन अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। शहरी वर्ग का एक बड़ा वोट बैंक भाजपा से जुड़ा हुआ है और कैप्टन का भी शहरी वर्ग में प्रभाव है। ऐसे में दोनों पार्टियां मिलकर शहरी वर्ग में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।