लोहड़ी का पर्व जानिए क्यो मनाया जाता है?इसका नाम कैसे पड़ा लोहड़ी

चंडीगढ (आज़ाद वार्ता)

लोहड़ी पर्व का उल्लेख पौराणिक कथाओं में मिलता है. पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि माता सती के पिता राजा दक्ष ने महायज्ञ किया था. इसमें भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया.
निमंत्रण नहीं मिलने से सती माता राजा दक्ष से नाराज हो गईं और उन्होंने स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया.
Happy Lohri 2024 : सिख समुदाय के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक लोहड़ी का पर्व आज 13 जनवरी को धूमधाम से मनाया जा रहा है. उत्तर भारत के राज्यों में खासतौर से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में इस त्योहार की धूम देखी जा रही है. इस दिन लोग एकजुट होकर आग जलाते हैं उसमें गुड, मूंगफली और तिल डातले हैं और नाच-गाने के साथ इस पर्व को मनाते हैं. यह पर्व क्यों मनाया जाता है और इसका नाम लोहड़ी क्यों पड़ा आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे.

लोहड़ी की क्या है पौराणिक मान्यता?

लोहड़ी पर्व का उल्लेख पौराणिक कथाओं में मिलता है. पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि माता सती के पिता राजा दक्ष ने महायज्ञ किया था. इसमें भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया. निमंत्रण नहीं मिलने से सती माता राजा दक्ष से नाराज हो गईं और उन्होंने स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया. ऐसा माना जाता है यह पर्व माता सती को ही समर्पित है. इस दिन लोग दुल्ला भट्टी से जुड़े गीत भी गाते हैं.

कौन थे ‘दुल्ला भट्टी’

पंजाब में दुल्ला भट्टी को एक नायक की तरह देखा जाता है. मुगल काल में खासकर अकबर के शासन काल में दुल्ला भट्टी नाम का एक व्यक्ति था. वह पंजाब में रहता था. ऐसा माना जाता है कि दुल्ला भट्टी ने साहस दिखाकर कई लड़कियों को अमीर सौदागरों से बचाया था. उस जमाने में लड़कियों को अमीर घरानों में बेच दिया जाता था. दुल्ला भट्टी ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की और उन लड़कियों का विवाह कराया. इस कारण दुल्ला भट्टी पंजाब में खूब प्रसिद्ध हुए. उन्हें नायक की उपाधि दी गई. यही कारण है कि लोहड़ी वाले दिन इस नायक को गीत गाकर याद किया जाता है. याद किया जाता है.

लोहड़ी क्यों मनाया जाता है?

लोहड़ी त्योहार अच्छी खेती के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. सूर्य के प्रकाश व अन्य प्राकृतिक तत्वों से तैयार हुई फसल के उल्लास में लोग एकजुट होकर यह पर्व मनाते हैं. इस दिन सभी लोग इकट्ठा होकर सूर्य भगवान एवं अग्नि देव का पूजन कर उनका आभार प्रकट करते हैं. यह पर्व समाज में आपसी सद्भाव और प्रेम को भी दर्शाता है. लोहड़ी के समय फसल पक जाती है और उसे काटने का वक्त आ चुका होता है. इस अवसर पर लोग अग्नि देव को रेवड़ी और मूंगफली अर्पित करते हैं तथा आपस में वितरित करते हैं.

कैसे पड़ा लोहड़ी नाम?

पौष माह के अंतिम दिन रात्रि में लोहड़ी जलाई जाती है. इस दिन के बाद प्रकृति में कई बदलाव आते हैं. लोहड़ी की रात साल की सबसे लंबी रात होती है. इसके बाद धीरे-धीरे दिन बड़े होने लगते हैं. मौसम फसलों के अनुकूल होने लगता है, इसलिए इसे मौसमी त्योहार भी कहा जाता है. लोहड़ी में ल से लकड़ी, ओह से गोहा (जलते हुए सूखे उपले) और ड़ी से रेवड़ी अर्थ होता है, इसलिए इस दिन मूंगफली, तिल, गुड़, गजक, चिड़वे, मक्के को लोहड़ी की आग पर से वारना करके खाने की परंपरा है.

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