लाखों वर्ष पहले कैसे सोता था मानव,कैसे होता था उनका बिस्तर, गुफाओं में कैसा था जीवन?

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चंडीगढ (आज़ाद वार्ता)

हमारे पूर्वजों यानि लगभग 1,00,000 वर्ष पूर्व के आदिम मानवों को जीवित रहने के लिए प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता था। अपना पेट पालने के लिए उन्हें अपनी जान जोखिम में डालकर जंगली जानवरों का शिकार करना पड़ता था।
वे अपने शरीर को जानवरों की खाल और पेड़ों की छाल से ढकते थे। समय के साथ उन्होंने कृषि की खोज की। उसी समय गुफाओं में रहने वाले मनुष्यों ने पत्थरों पर सोने के बजाय एक नए प्रकार के बिस्तर की खोज की थी। दक्षिण अफ्रीका के प्राचीन निवासियों ने पत्थर की बनी गुफाओं की तुलना में गुफाओं में अपना बिस्तर अधिक आरामदायक बनाया।

गुफाओं में रहना कभी आसान नहीं था। इसी काल में दक्षिणी अफ्रीका के मानव शरीर को अधिक आराम देने के लिए अपने घरों को अधिक से अधिक आरामदायक बनाने लगे। इसी क्रम में उन्होंने अपने बिस्तर पर राख और घास की क्यारी बिछानी शुरू कर दी थी। साइंस जर्नल में एक नए अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक, जहां एक तरफ उन्हें राख और घास से बने बिस्तरों पर ज्यादा आराम मिला, वहीं दूसरी तरफ उन्हें कीड़ों से भी बचाया जा सका। रिपोर्ट के मुताबिक, इस आरामदायक बिस्तर को इंसान ने एक लाख साल पहले विकास के क्रम में बनाया था।

शोधकर्ताओं ने पहले बताया था कि दक्षिण अफ्रीका में सिबडू के आदमी ने 77 हजार साल पहले पौधों का इस्तेमाल कर बिस्तर बनाया था। तब शोधकर्ताओं ने बताया था कि इंसानों ने राख और औषधीय गुणों वाले पौधों की मदद से बिस्तर बनाया था, जो काफी आरामदायक था। अब एक नए शोध में खुलासा हुआ है कि बिस्तर को आरामदायक बनाने की प्रक्रिया एक लाख साल पहले शुरू हुई थी। नई खोज के नतीजे साउथ अफ्रीका की बॉर्डर केव में किए गए शोध से सामने आए हैं। इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि 2.27 लाख साल पहले इंसान इसमें रहा करते थे। माइक्रोस्कोपिक और स्पेक्ट्रोस्कोपिक तकनीकों का उपयोग करने वाले अध्ययनों से पता चला है कि बिस्तर में इस्तेमाल की जाने वाली सफेद राख उस समय से चली आ रही है जब मनुष्य गुफा में प्रवेश करता था।

शोधकर्ताओं का दावा है कि गुफा के एक हिस्से में सफेद राख और पौधों का मिश्रण मिला है। उनका दावा है कि इंसान इसका इस्तेमाल बिस्तर के लिए करते थे। दरअसल, राख कीड़ों को बिस्तर पर चढ़ा देती है और उनके डंक को बेकार कर देती है। वहीं राख के कारण कीड़ों में पानी की कमी हो जाती है। इससे उनकी मौत हो जाती है। इस मिश्रण में उन्हें कपूर के पत्तों के अवशेष मिले। इस सुगंधित पौधे का उपयोग आज भी दक्षिण अफ्रीका में कीट विकर्षक के रूप में किया जाता है। साथ ही इनका इस्तेमाल आज भी बेड में किया जाता है। इससे उन्हें कीड़ों से बचाने के लिए तैयार की गई थ्योरी को सपोर्ट मिलता है।

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लाखों वर्ष पहले कैसे सोता था मानव,कैसे होता था उनका बिस्तर, गुफाओं में कैसा था जीवन?

चंडीगढ (आज़ाद वार्ता)

हमारे पूर्वजों यानि लगभग 1,00,000 वर्ष पूर्व के आदिम मानवों को जीवित रहने के लिए प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता था। अपना पेट पालने के लिए उन्हें अपनी जान जोखिम में डालकर जंगली जानवरों का शिकार करना पड़ता था।
वे अपने शरीर को जानवरों की खाल और पेड़ों की छाल से ढकते थे। समय के साथ उन्होंने कृषि की खोज की। उसी समय गुफाओं में रहने वाले मनुष्यों ने पत्थरों पर सोने के बजाय एक नए प्रकार के बिस्तर की खोज की थी। दक्षिण अफ्रीका के प्राचीन निवासियों ने पत्थर की बनी गुफाओं की तुलना में गुफाओं में अपना बिस्तर अधिक आरामदायक बनाया।

गुफाओं में रहना कभी आसान नहीं था। इसी काल में दक्षिणी अफ्रीका के मानव शरीर को अधिक आराम देने के लिए अपने घरों को अधिक से अधिक आरामदायक बनाने लगे। इसी क्रम में उन्होंने अपने बिस्तर पर राख और घास की क्यारी बिछानी शुरू कर दी थी। साइंस जर्नल में एक नए अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक, जहां एक तरफ उन्हें राख और घास से बने बिस्तरों पर ज्यादा आराम मिला, वहीं दूसरी तरफ उन्हें कीड़ों से भी बचाया जा सका। रिपोर्ट के मुताबिक, इस आरामदायक बिस्तर को इंसान ने एक लाख साल पहले विकास के क्रम में बनाया था।

शोधकर्ताओं ने पहले बताया था कि दक्षिण अफ्रीका में सिबडू के आदमी ने 77 हजार साल पहले पौधों का इस्तेमाल कर बिस्तर बनाया था। तब शोधकर्ताओं ने बताया था कि इंसानों ने राख और औषधीय गुणों वाले पौधों की मदद से बिस्तर बनाया था, जो काफी आरामदायक था। अब एक नए शोध में खुलासा हुआ है कि बिस्तर को आरामदायक बनाने की प्रक्रिया एक लाख साल पहले शुरू हुई थी। नई खोज के नतीजे साउथ अफ्रीका की बॉर्डर केव में किए गए शोध से सामने आए हैं। इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि 2.27 लाख साल पहले इंसान इसमें रहा करते थे। माइक्रोस्कोपिक और स्पेक्ट्रोस्कोपिक तकनीकों का उपयोग करने वाले अध्ययनों से पता चला है कि बिस्तर में इस्तेमाल की जाने वाली सफेद राख उस समय से चली आ रही है जब मनुष्य गुफा में प्रवेश करता था।

शोधकर्ताओं का दावा है कि गुफा के एक हिस्से में सफेद राख और पौधों का मिश्रण मिला है। उनका दावा है कि इंसान इसका इस्तेमाल बिस्तर के लिए करते थे। दरअसल, राख कीड़ों को बिस्तर पर चढ़ा देती है और उनके डंक को बेकार कर देती है। वहीं राख के कारण कीड़ों में पानी की कमी हो जाती है। इससे उनकी मौत हो जाती है। इस मिश्रण में उन्हें कपूर के पत्तों के अवशेष मिले। इस सुगंधित पौधे का उपयोग आज भी दक्षिण अफ्रीका में कीट विकर्षक के रूप में किया जाता है। साथ ही इनका इस्तेमाल आज भी बेड में किया जाता है। इससे उन्हें कीड़ों से बचाने के लिए तैयार की गई थ्योरी को सपोर्ट मिलता है।