राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान की पहल, इस आधुनिक तकनीक से सुधरेगी देसी गायों की नस्ल

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इस वर्ष करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। इसे देखते हुए संस्थान प्रशासन ने अलग अलग क्षेत्रों में अनुसंधान की प्रक्रिया तेज करने पर फोकस किया है, जिसके तहत देसी नस्ल की गीर गाय में क्लोनिंग और साहिवाल में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन यानि आइवीएफ तकनीक पर काम चल रहा है।

संस्थान के विज्ञानियों का दावा है कि आने वाले समय में गीर ही नहीं, अन्य देसी नस्लों के क्लोन पशु तैयार किए जा सकेंगे।

एनडीआरआइ की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने को लेकर संस्थान प्रशासन की ओर से वार्षिक कार्य योजना का खाका तैयार किया गया है। इसमें भारतीय डेयरी नस्ल की गायों को और अधिक दुधारू बनाने के साथ उनकी उत्पादन संख्या में वृद्धि पर खासा ध्यान दिया जा रहा है। संस्थान के निदेशक डा. मनमोहन सिंह चौहान ने बताया कि एनडीआरआई अपनी स्थापना के 100 साल पूरे कर रहा है। इस अवसर को वह यादगार ही नहीं बल्कि, विशिष्ट उपलब्धियों से भी परिपूर्ण बनाना चाहते हैं। इसी सोच के साथ अनुसंधान के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए जाएंगे। इसके तहत गीर नस्ल की गायों से क्लोन बनाने की तैयारी है। इस पर उनके दिशा-निर्देशन में पहले से ही काम शुरू हो चुका है और बहुपयोगी तकनीक विकसित की जा रही है। पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में संस्थान में गीर गाय के क्लोन पशु तैयार होंगे।

अच्छी दुधारू नस्ल में शामिल गीर

उन्होंने स्पष्ट किया कि गीर नस्ल को काफी दुधारू माना जाता है। गहन अनुसंधान के आधार पर विकसित की गई तकनीक की मदद से इस गाय के शरीर की कोशिकाएं लेकर क्लोन भ्रूण तैयार किए जा रहे हैं। अभी तक तीन गीर गायों में भ्रूण प्रत्यारोपण कर दिया है। इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए 2022 में गीर नस्ल के क्लोन पशु तैयार करने में और अधिक सफलता मिलने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में संस्थान ने हस्तनिर्मित क्लोनिंग तकनीक की मदद से पहली मुर्रा नस्ल की कटड़ी पैदा करके सबको चौंका दिया था। इससे संस्थान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना हासिल हुई थी। इसी क्रम में अब तक संस्थान में 24 क्लोन कटड़े व कटड़ी तैयार हो चुके हैं।

साहिवाल नस्ल पर भी हो रहा काम

संस्थान में साहिवाल नस्ल की गाय और भैंसों में डिंब पिक-अप-इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (ओपीयू-आईवीएफ) तकनीक पर भी अनुसंधान जारी है। टेस्ट ट्यूब बेबी की तर्ज पर इसके जरिए भ्रूण तैयार किए जा रहे हैं। अब तक साहिवाल नस्ल की नौ गाय के गर्भाशय में भ्रूण प्रत्यारोपित कर दिए हैं। बता दें कि गाय का गर्भ काल लगभग नौ महीने नौ दिन का होता है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद साहिवाल नस्ल के पशुओं में आईवीएफ तकनीक के परिणाम आने शुरू हो जाएंगे। साहिवाल नस्ल का उद्गम स्थल पंजाब, हरियाणा, पाकिस्तान का पंजाब व सिंध क्षेत्र है। इसे देसी गाय की दुधारू पशुओं में काफी उत्तम माना जाता है। डा. चौहान ने बताया कि क्लोनिंग की दिशा में कार्य जारी हैं।

विशेषज्ञ देंगे आईवीएफ तकनीक की जानकारी

दुधारू गाय का अंडा लेकर टेस्ट ट्यूब भ्रूण तैयार किए जा रहे हैं। इस कार्य के लिए ऐसे सांड के वीर्य का चयन किया गया, जिसकी मां का 305 दिन में 4000 लीटर दूध देने का रिकार्ड है। सफलता मिलने पर राज्य पशुपालन विभाग के पशु चिकित्सा विशेषज्ञों को भी आईवीएफ तकनीक की जानकारी देंगे ताकि आधुनिक और बहुपयोगी तकनीक की मदद से देकर देसी तथा उन्नत नस्लों को बढ़ावा दिया जाए।

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