दुखद: नहीं रहे पीजीआई चंडीगढ़ के ‘लंगर बाबा’, भूखों का पेट भरने में लगाई थी करोड़ों की प्रॉपर्टी

पीजीआई चंडीगढ़ के बाहर लंगर लगाने वाले पद्मश्री जगदीश आहूजा का सोमवार को निधन हो गया। दोपहर 3 बजे चंडीगढ़ के सेक्टर 25 श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया। लंगर बाबा के नाम से मशहूर आहुजा ने पीजीआई के साथ ही जीएमएसएच-16 और जीएमसीएच-32 के सामने भी लंगर लगाकर लोगों का पेट भरा।

40 सालों से लंगर बाबा सेवा कर रहे थे। इसलिए उन्हें पिछले वर्ष पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था।लोगों का पेट भरने के लिए करोड़ों रुपये की संपत्ति दान करने वाले लंगर बाबा सेक्टर 23 में रहते थे। उम्र के 85 बसंत देख चुके जगदीश आहूजा को लोग प्यार से ‘लंगर बाबा’ के नाम से पुकारते थे। पटियाला में उन्होंने गुड़ और फल बेचकर अपना जीवनयापन शुरू किया। 1956 में लगभग 21 साल की उम्र में चंडीगढ़ आ गए। उस समय चंडीगढ़ को देश का पहला योजनाबद्ध शहर बनाया जा रहा था। यहां आकर उन्होंने एक फल की रेहड़ी किराए पर लेकर केले बेचना शुरू किया।
चार रुपये 15 पैसे लेकर चंडीगढ़ पहुंचे
चंडीगढ़ में आने के दौरान लंगर बाबा के हाथ मे चार रुपये 15 पैसे थे। यहां आकर धीरे-धीरे पता लगा कि मंडी में किसी ठेले वाले को केला पकाना नहीं आता। पटियाला में फल बेचने के कारण वह इस काम में माहिर हो चुके थे। बस फिर उन्होंने काम शुरू किया और अच्छे पैसे कमाने लगे।
विभाजन के दौरान कई बार भूखा सोना पड़ा
लंगर बाबा 1947 में अपनी मातृभूमि पेशावर से बचपन में विस्थापित होकर पंजाब के मानसा शहर आ गए थे। उस समय उनकी उम्र करीब 12 वर्ष थी। इतनी कम उम्र से ही उनका जीवन संघर्ष शुरू हो गया था। उनका परिवार विस्थापन के दौरान गुजर गया था। ऐसे में जिंदा रहने के लिए रेलवे स्टेशन पर उन्हें नमकीन दाल बेचनी पड़ी ताकि उन पैसों से खाना खाया जा सके और गुजारा हो सके। कई बार तो बिक्री न होने पर भूखे पेट ही सोना पड़ता था।
दादी से मिली लंगर लगाने की प्रेरणा
चंडीगढ़ में हालात सुधरे तो वर्ष 1981 में चंडीगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में उन्होंने लंगर लगाना शुरू किया। आहूजा को लोगों को भोजन करवाने की प्रेरणा उनकी दादी माई गुलाबी से मिली, जो गरीबों के लिए अपने शहर पेशावर (अब पाकिस्तान में) में लंगर लगाया करती थीं। वर्तमान में इस काम में उनकी पत्नी निर्मल भी पूरा सहयोग कर रहीं थीं। लंगर बाबा लोगों को सात्विक भोजन देते थे। हलवा और फल के अलावा दाल, चावल, सब्जी व रोटी भी लंगर में वितरित करते थे