होली पर्व पर विशेष -गुरु गोबिंद सिंह जी ने सनातनी सिखों में वीरता का रस भरने के लिए शुरू किया था ‘होला-मोहल्ला’

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प्रस्तुति – नवीन चन्द्र पोखरियाल रामनगर जिला नैनीताल उत्तराखंड

वैसे तो पूरे भारत वर्ष में होली का त्यौहार पूरी धूमधाम तथा श्रद्धा से मनाया जाता है, परंतु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने होली उत्सव के साथ साथ होला-मोहल्ला शुरू किया था। यह त्यौहार सनातन सिखों में वीरता का रस भरने के लिए शुरू किया गया था।

श्री आनंदपुर साहिब के निकट गांव अगंमपुर के स्थान पर एक खुले मैदान में गुरु गोबिंद सिंह जी ने 22 फरवरी, 1701 ई. को सारी संगत को बड़ी संख्या में इकट्ठे होकर श्री आनंदपुर साहिब से वहां पर पहुंचने के लिए कहा। यह होली पूजन के अगले दिन की बात है।

गुरु जी ने खुले मैदान में सिख योद्धाओं को दो हिस्सों में बांट दिया और उनके घुड़सवारी, नेजाबाजी, तलवारबाजी, गत्तका तथा कुश्ती के मुकाबले करवाने शुरू कर दिए। उन्हें सैन्य प्रशिक्षण देने के लिए एक-दूसरे समूह पर बनावटी हमला करने का प्रशिक्षण भी दिया गया इस बनावटी प्रहार के त्यौहार को नाम दिया गया होला-मोहल्ला।

भाई काहन सिंह नाभा ‘महान कोष’ में होला-मोहल्ला को परिभाषित करते हुए लिखते हैं कि शब्द होला ‘एक सैन्य प्रभार’ शब्द से लिया गया है तथा मोहल्ला शब्द का अर्थ है ‘सिखों का एक संगठित इकट्ठ या एक सेना’।

गांव अगंमपुर में गुरु जी ने एक किला बनवाया गया जिसका नाम किला अगंमपुर रखा गया, परंतु यहां पर त्यौहार होला-मोहल्ला शुरू करने के लिए इसका नाम किला होलगढ़ पड़ गया।

आज भी सनातनी सिख संगत तथा निहंगसिंह श्री आनंदपुर साहिब से पुरानी परम्परा के अनुसार एक बड़े संगठित इकट्ठ की शक्ल में किला होलगढ़ साहिब तक पहुंचते हैं तथा वहां पर तरह-तरह के खेल मुकाबले करवाए जाते हैं। गुरु जी के समय भी विभिन्न खेलों में जीतने वालों को बड़े इनाम देकर सम्मानित किया जाता था।

गांव अगंमपुर में ही भाई नंदलाल गोया जी की गुरु जी के साथ मुलाकात हुई तथा वह सदैव के लिए गुरु चरणों के ही होकर रह गए।

फूलों तथा गुलाल की बौछार

जैसे होली पर एक-दूसरे पर रंगों की बौछार की जाती है, उसी तरह होला-मोहल्ला के पर्व पर एक-दूसरे पर फूल तथा गुलाल फैंका जाता है।

निहंग सिंह गतके ( अपने हथियार) का बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं तथा यह आत्मरक्षा करने तथा हमला करने की सबसे बड़ी कला है।

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