पंजाब में गाय से जुड़े हादसों में हर तीसरे दिन एक व्यक्ति की मौत:शिगंरा सिंह बैंस

चंडीगढ (सचित गौतम)
पंजाब में बेसहारा घूम रखा गोवंश प्रदेश के लिए गंभीर समस्या बनता जा रहा है, वही प्रदेश सरकार इसे गंभीरता से नही ले रही।पंजाब को इसकी दो तरफा मार झेलनी पड़ रही है ,एक तो किसानों की फसलों का नुक्सान दुसरा बेसहारा घूम रहे गौवंश से आए दिन हो रहे हादसें भी विकराल रूप धारण कर रहे। आइए जाने इस पर पंजाब गौशाला महासंघ के अध्यक्ष शिंगारा सिंह बैंस का क्या कहना है और पंजाब गौशाला महासंघ इसके लिए क्या क्या उपराले कर रहा है । इसके साथ उनसे जानेगे की इसका क्या समाधान है व गौशालाओ को कैसे आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।
पंजाब गौशाला महासंघ अध्यक्ष शिगंरा सिंह बैंस के अनुसार, एक लाख से अधिक गायें बेसहारा घूम रही हैं. इन्हें गोशालाओं में पहुंचाया जाना चाहिए.
पंजाब में बेसहारा गायों को सड़क से उठाकर गोशालाओं में पहुंचाने के लिए प्रदेश सरकार से सहयोग की मांग करते हुए पंजाब गौशाला महासंघ के अध्यक्ष ने कहा है कि प्रदेश में एक लाख से अधिक गाय सड़कों पर बेसहारा घूम रही हैं, जिनके कारण से होने वाले सड़क हादसों में औसतन हर तीसरे दिन प्रदेश में एक व्यक्ति की मौत हो जाती है.
उन्होने कहां है की, प्रदेश में बेसहारा गायें सड़कों पर घूम रही हैं जिससे न केवल हादसे होते हैं बल्कि किसानों की फसल भी बर्बाद हो जाती है. सरकार अगर इसमें हमारी मदद करती है तो सड़कों से उठाकर गायों को गोशालाओं में पहुंचाया जा सकता है.
उन्होंने बताया, सड़क हादसों और लोगों की मौत के बाद भी सरकार और प्रशासन इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं.उन्होंने बताया, पंजाब गौशारा महासंघ के पास जो रिकॉर्ड आए हैं उनके अनुसार पिछले ढाई साल में प्रदेश में कम से कम 300 लोगों की मौत गाय के कारण हुए सड़क हादसों में हुई है. वर्तमान समय में एक लाख छह हजार ऐसी गाय हैं जो प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में सड़कों पर घूम रही हैं.अध्यक्ष ने बताया, इन गायों के कारण होने वाले सड़क हादसों में इंसान के साथ-साथ ये बेज़ुबान भी प्रभावित होते हैं।
पशुपालक और प्रशासन दोनों जिम्मेदार
शिगंर सिंह बैस गायों की दुर्दशा को लेकर खासे चिंतित हैं। उन्होंने कहा गायों की दुर्दशा के लिए पशुपालक और प्रशासन दोनों जिम्मेदार हैं। गायों की दुर्दशा का आलम यह है कि उन्होंने खुद कई बार दुधारू गायों पर आवारा कुत्तों को झपटते देखा है। हाल ही में आठ-दस आवारा कुत्ते एक अच्छी खासी गाय को नोचते हुए मिले। उन्होने ने कहा पशुपालक इन गायों से दूध निकालकर अच्छा खासा मुनाफा कमाते हैं तो इनके उचित रहन-सहन की व्यवस्था उन्हीं को करनी चाहिए।
पिछले कई दिनों से देखा जा रहा है कि शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में भी कुछ पशुपालक अपने पशुुओं को बेसहारा छोड़ रहे हैं। इससे गायों को अधिकांश गंदगी में मुंह मारते देखा गया है। कुछ पशु तस्कर भी इसी का फायदा उठा रहे हैं।
सिर्फ सरकारी योजनाओं के भरोसे खत्म नहीं होगी बेसहारा गौवंश की समस्या
भारत दुनिया का सबसे अधिक पशुधन वाला देश है। यह आंकड़ा तब शर्मिंदगी का कारण बन जाता है जब यह पता चलता है कि भारत में दुनिया के सर्वाधिक बेसहारा पशु भी हैं, जो न केवल हमारी खेती को बर्बाद कर रहे हैं, बल्कि आए दिन दुर्घटना का कारण बन कर लोगों की मौत की वजह भी बन रहे हैं। भारत के लगभग हर हिस्से में पालतू पशुओं का सड़कों पर फिरना और कूड़ेदानों के आसपास मंडराना एक आम दृश्य है। कुछ राज्यों में तो बेसहारा गोवंश मुख्य राजनीतिक मुद्दा बन गए हैं।राष्ट्रीय स्तर पर देश में वेसहारा गोवंश की संख्या 2019 की जनगणना के अनुसार 50.21 लाख है। अलग अलग राज्य सरकारें दावा करती हैं कि वे अपने राज्य में खुले में घूम रहे गोवंश के आश्रय के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं। आर्थिक मदद भी दे रही हैं। पर क्या सिर्फ सरकारी योजनाओं के भरोसे इस समस्या का निराकरण हो सकता है? संभवतः नहीं। जब तक पशुपालक अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझेंगे, तब तक इस समस्या का स्थाई समाधान नहीं हो सकता।
दूध बंद, चारा बंद
एक बार जब गाय दूध देना बंद कर देती है, तो गाय को खिलाना और उसका रखरखाव करना पशुपालक पर वित्तीय बोझ बन जाता है और वह गोवंश के रखरखाव का खर्च वहन नहीं करना चाहता। कई मामले में उसकी आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं होती कि वह अपनी जेब से पशुओं का चारा खरीद सके। क्योंकि अनुत्पादक गोवंश के रखरखाव के लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है।
बेसहारा गोवंश के कारण ट्रैफिक जाम और सड़क दुर्घटनाएँ
भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में वैसे ही सड़क दुर्घटनाओं की संख्या हर दिन बढ़ रही है। इसके कारणों में एक प्रमुख कारण पशुओं की वाहन से टक्कर भी है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और बिहार जैसे प्रदेशों में ये घटनाएं ज्यादा हैं। खासकर दुपहिया वाहनों के साथ पशुओं के टकराने की घटनाएं ज्यादा होती हैं।
बेसहारा पशुओं की समस्या के समाधान तो कई हैं, लेकिन सबसे पहले लोगों में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। किसानों और गोपालकों के मन में यह श्रद्धा होनी चाहिए कि गोवंश का रखरखाव मनुष्यों के लिए भी जरूरी है। पंजाब गौशाला ने महासंघ के अध्यक्ष तो यहां तक कह रहे है की बूढ़ी गायों की मां के रूप में सेवा करनी चाहिए। खैर इस भावना को व्यक्तिगत भावना के रूप में छोड़ भी दें तो भी यह मन में विचार तो रखना ही चाहिए कि गोवंश का उपयोग केवल दूध में नहीं है। बल्कि खेती के लिए खाद और ढुलाई में बैलों का उपयोग धन और पर्यावरण को भी बचाता है। मशीन का उपयोग काम को जल्दी तो निपटा सकता है पर लंबे समय के लिए हमारे पर्यावरण को भी नुकसान हो सकता है।
आजकल देश ही नहीं, विदेशों में भी भारतीय नस्लों की गाय की मांग होने लगी है। जो लोग बछड़ों को अनुपयोगी मानकर सड़क पर छोड़ देते हैं वे इन्हीं बछड़ों से सीमेन बैंक बना सकते है। अनुसंधान संस्थानों को भी देशी नस्लों के वीर्य का उपयोग करना चाहिए। दूसरा दृष्टिकोण रिवर्स क्रॉसब्रीडिंग हो सकता है, जहां भ्रूण स्थानांतरण तकनीक के माध्यम से शुद्ध स्वदेशी गायों का उत्पादन करने के लिए क्रॉसब्रीड किस्मों को पालक माताओं के रूप में उपयोग किया जाता है।
विदेशी नस्लों की तुलना में भारतीय नस्लों को बढ़ाने में फायदा है क्योंकि वे प्राकृतिक रूप से ए 2 गुणवत्ता वाला दूध पैदा करती हैं जो मनुष्यों के लिए फायदेमंद है। देशी गाय के दूध में संयुग्मित लिनोलिक एसिड, ओमेगा 3 फैटी एसिड और सेरेब्रोसाइड्स जैसे कुछ उपयोगी घटक भी उच्च स्तर पर होते हैं।
देशी गोवंश के गोबर में बहुत सारे उपयोगी बैक्टीरिया होते हैं जो रोगजनक उपभेदों से होने वाली बीमारियों को रोक सकते हैं और इसे प्राकृतिक शोधक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। गाय का गोबर सूक्ष्म वनस्पतियों का एक समृद्ध स्रोत है जिसका उपयोग प्रोबायोटिक्स के रूप में किया जा सकता है।
गाय के गोबर का उपयोग किण्वन और गैसीकरण प्रक्रियाओं के माध्यम से ऊर्जा उत्पादन में किया जाता है। गाय के गोबर की राख का उपयोग पारंपरिक सामग्री के आंशिक प्रतिस्थापन और अवशोषक के रूप में निर्माण में किया जा सकता है।
गोमूत्र का उपयोग कृषि में जैव कीटनाशक, उपज बढ़ाने वाले और मिट्टी के कायाकल्प के अलावा बीमारियों को ठीक करने, मच्छरों को नियंत्रित करने, कीटाणुशोधन और मछली के भोजन के रूप में किया जा सकता है।
देसी गोधन का बढ़ा रूझान, सरकारें भी हुईं मेहरबान
शास्त्रों में यदि गाय को माता कहा गया है तो इसके पीछे सिर्फ गाय के साथ भावनात्मक संबंध ही नहीं है, बल्कि गाय के दूध, जिसे देश के अधिकतर भागों में गो रस भी कहते हैं, में उपस्थित औषधीय गुण भी हैं। जिन नवजात बच्चों को उनकी मां किसी कारण स्तनपान नहीं करा पाती, उन बच्चों के लिए आधुनिक चिकित्सक भी देसी गाय का दूध पिलाने के लिए कहते हैं। गाय ही एक मात्र ऐसी पशु है जिसके हर अंग की पूजा और उससे प्राप्त हर वस्तु का उपयोग चिक्तिसा से लेकर धर्म कर्म में होता है। गाय से प्राप्त वस्तुओं को हम पंचगव्य कहते हैं। जिसमें दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र भी शामिल हैं। जन्म-मरण सब में गाय की उपयोगिता है।
कुछ दशक पहले गोपालकों में यह भ्रम पैदा कर दिया गया कि लाभदायकता के लिए देसी से ज्यादा विदेशी नस्ल, खासकर आस्ट्रेलियन और कनाडियन गायों को पालना श्रेयस्कर है। इसे जर्सी गाय कहते हैं। फिर क्या था देश में अंधाधुंध तरीके से गायों की नस्लें बिगाड़ने का काम चालू हो गया। खासकर डेयरी उद्योग में सक्रिय लोगों ने देसी गाय के बजाय जर्सी गाय का पालन शुरू कर दिया। लेकिन जल्दी ही लोगों को मालूम चल गया कि जर्सी गाय का दूध ना सिर्फ सेहत के लिए हानिकाकारक है, बल्कि कई बीमारियों का कारण भी है।
कुछ जागरूक गोपालकों ने पहले एक अभियान के तहत गायों की नस्लों में सुधार के लिए आंदोलन चलाया, फिर वैज्ञानिकों ने भी उनका साथ दिया। अब सरकारें भी गोपालकों को गायों की नस्ल सुधारने में सहयोग कर रही हैं। केंद्र सरकार राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत गो नस्लों में सुधार के लिए पूंजीगत खर्च मे 50 प्रतिशत की सब्सिडी दे रही है
उत्तरप्रदेश सरकार ने हाल ही में नंद बाबा दुग्ध मिशन के नाम से 1000 करोड़ रुपये की योजना शुरू की है, जिसमें गाय की नस्ल सुधारने के लिए किसानों को 15 हजार रूपये तक की सहायता दी जा रही है। अब उपभोक्ताओं को भी जागरूक बनाने के लिए यह जानना जरूरी है कि देसी गायों के दूध और जर्सी गायों के दूध में से कौन ज्यादा स्वास्थ्यवर्द्धक और सुपाच्य है। पंजाब सरकार को भी इसपर विचार करना चाहिए ये कहना है पंजाब गौशाला महासंघ के अध्यक्ष शिगंरा सिंह बैंस का है। जो दिन रात एक किए हुए है गौसेवा के लिए ,आपको बता दे शिगंरा सिंह बैंस ने पंजाब की सभी गौशालाओ का भ्रमण किया हुआ है ये गोवंश के लिए काफी चिंतित रहते है उन्होने ने जहां तक कह दिया है की पंजाब सरकार हमे वन विभाग की खाली पड़ी भूमि मुहैया करवा दे तो वह दिन दूर नही जब आपको एक भी गौवंश बेसहारा सड़कों घूमता मिल जाए, पंजाब में ये एक बहुत ही गंभीर समस्या है पंजाब के लोगो का दोनो तरफ से नुक्सान हो रहा है एक फसल का दुसरा दुर्घटनाग्रस्त होकर लोगो की जान जा रही है। पंजाब सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए व उचित कदम उठाने चाहिए ताकि पंजाब की जनता राह की सांस ले सके।
भारत विश्व में सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाला देश है, जिसकी विश्व के कुल दूध उत्पादक में सबसे ज्यादा 24 प्रतिशत हिस्सेदारी है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान विश्व भर में लगभग 9208 लाख टन दूध का उत्पादन हुआ, जिसमें भारत ने 2210 लाख टन दूध का उत्पादन किया। भारत में कुल दूध उत्पादन में गाय के दूध की हिस्सेदारी लगभग 51 प्रतिशत तथा भैंस के दूध की हिस्सेदारी लगभग 45.07 प्रतिशत रही।भारत में दूध उत्पादन बढ़ाने में जहां केंद्र सरकार अपने स्तर पर प्रोत्साहित करती है, वहीं राज्य सरकारें भी दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर प्रोत्साहन योजनाएं व कार्यक्रम चलाती रहती हैं।
भारत में गोधन की स्थिति
भारत में दुग्ध उद्योग से लगभग 8 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। 20वीं पशुधन गणना (2019) के अनुसार भारत में 5367.6 लाख पशुधन हैं, जिसमें गायों की संख्या 1934.6 लाख तथा भैंसों की संख्या 1098.5 लाख है। वहीं विदेशी/संकर नस्ल वाली गायों की संख्या 504.2 लाख तथा स्वदेशी नस्ल की गायों की संख्या 1421.1 लाख है। विश्व भर के गोधन का 14 प्रतिशत भारत में है। दूध उत्पादन के हिसाब से पशुधन की हिस्सेदारी देखें तो वित्तीय वर्ष 2021-22 के कुल दूध उत्पादन 2210 लाख टन में गाय के दूध की हिस्सेदारी 51.67 प्रतिशत व भैंस के दूध की हिस्सेदारी 45.07 प्रतिशत रही। विदेशी गाय से 1.92 प्रतिशत, शंकर नस्ल गाय से 25.91 प्रतिशत, देसी गाय से 10.35 प्रतिशत तथा अन्य गाय से 13.49 प्रतिशत दूध उत्पादन हिस्सेदारी रही। स्पष्ट है कि भारत के कुल दूध उत्पादन में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी गोधन की है। इसलिए सरकारें इस पर जोर दे रही हैं।
भारत की कुछ प्रमुख देसी नस्ल गाय
साहीवालः इस गाय को मांटगोमरी, मुल्तानी आदि अन्य नामों से भी पुकारा जाता है। साहीवाल गाय अधिकतर पंजाब, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में मिलती है। भारत में यह गाय की अत्यधिक दुधारू किस्म है। यह एक सीजन में औसतन लगभग 2000 लीटर से अधिक दूध देती है। कभी-कभी ऐसा भी देखा गया है कि यह गाय एक सीजन में लगभग 5000 लीटर तक भी दूध दे देती है।
धारपारकरः इस नस्ल की गाय अधिकतर राजस्थान व गुजरात में मिलती है। इसे उजली सिंधी के नाम से भी जाना जाता है। यह सीजन में लगभग 1500 लीटर से 4000 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है।
गिर गायः इसको सूर्ती, देकन और काठियावाड़ी आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। यह मुख्यतः गुजरात, महाराष्ट्र, व राजस्थान में पायी जाती है। यह एक सीजन (लगभग 300 दिन) में औसतन लगभग 1700 लीटर से अधिक दूध देती है।
सिंधीः यह गाय गहरे लाल या भूरे रंग की और मोटे सींग वाली होती है। सिंधी गाय एक सीजन में लगभग 1500 लीटर तक दूध का उत्पादन करती है।
हरानाः यह अधिकतर दिल्ली और हरियाणा में पायी जाती है और एक सीजन में लगभग 1400 लीटर तक दूध देती है।
कांकरेजः इसको बन्नाय या नागू नाम से भी पुकारा जाता है। यह अधिकांशतः राजस्थान और गुजरात में पायी जाती है, जो एक सीजन में लगभग 1350 लीटर तक दूध देती है।
देसी नस्ल की गाय की बढ़ती मांग
विश्व स्तर पर भारत की देसी नस्ल की गाय के दूध की बहुत मांग है। इसकी वजह भारत की देसी नस्ल की गाय के दूध का ए-2 होना है। वहीं संकर व विदेशी गाय का दूध ए-1 होने के कारण उसकी मांग घटती जा रही है।
आखिर यह ए-1 व ए-2 क्या होता है?
वैज्ञानिकों के अनुसार दूध में लगभग 80 फीसदी प्रोटीन केसीन पाया जाता है। जिसको 2 प्रकार से विभाजित किया गया है – ए-1 तथा ए-2। जिस दूध में ए-1 बीटा-केसीन (एक रसायनिक संरचना) होता है वह ए-1 दूध तथा जिसमें ए-2 बीटा-केसीन होता है, वह दूध ए-2 होता है।
विभिन्न शोध व अध्ययनों से पता चलता है कि ए-1 दूध में पाया जाने वाला बीटा-केसीन दिल की बीमारी, टाइप-1 डायबिटीज (शुगर) आदि बीमारियों के खतरे को बढ़ाता है और यह उत्तेजक (इंफ्लामेटरी) भी होता है। इसके साथ-साथ पाचन क्रिया को भी प्रभावित करता है। वहीं ए-2 दूध के सेवन से अनेक बीमारियां दूर होती है और पाचन तंत्र को भी मजबूत करता है। यही कारण है कि ए-2 को ए-1 की तुलना बेहतर और स्वस्थ विकल्प बताया जा रहा है और इसलिए भारत की देसी नस्ल की गाय के दूध की मांग बढ़ती जा रही है।
किसानों का सहारा बनेंगी सड़कों पर घूमने वाली बेसहारा गाय, इस तरह बढ़ा देंगे मुनाफा
प्राकृतिक खेती में गौवंश का अहम योगदान है. गोबर और गौमूत्र से बने खाद-उर्वरक फसल की क्वालिटी और उत्पादन बढ़ाते हैं. किसानों को कम खर्च में बढ़िया कमाई हो जाती है.
देशभर में गौ आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. खेती की लागत को कम करने के लिए अब कई राज्य सरकारें किसानों को गाय या पशु खरीदने के लिए आर्थिक मदद दे रही हैं. वहीं दूसरी तरफ देश में आवारा और बेसहारा जानवरों की तादात बढ़ती जा रही है. जब पशु दूध देना बंद देते हैं तो कई किसान और पशुपालक उन्हें सड़क पर ही छोड़ देते हैं, लेकिन वो ये नहीं जानते कि बेसहारा गाय ही उनका असली सहारा हैं
गाय आधारित खेती के लिए इन बेसहारा गाय-भैसों से गोबर और गौमूत्र का उत्पादन ले सकते हैं, जिससे बने खाद और जैव उर्वरक फसल का उत्पादन बढ़ाते हैं. इस तरह किसानों को अलग से पशु खरीदने के लिए पैसा खर्चा नहीं करना पड़ेगा और कम लागत में ही जबरदस्त कमाई का इंतजाम हो जाएगा.
इस तरह कमाएं मुनाफा
जब गाय दूध देना बंद कर देती हैं, तब भी वो बहुत काम की होती हैं. बस उनकी अहमियत समझने की देर है और किसान पहले से ही अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. गाय से गोबर और गौमूत्र का उत्पादन लेकर जीवामृत, बीजामृत, घनामृत, पंचगव्य, नीमास्त्र बनाए जाते हैं. इन सभी का इस्तेमाल खाद-उर्वरक के तौर पर किया जाता है.
ये क्वालिटी में साधारण और रसायनिक खाद-उर्वरकों से भी शक्तिशाली होते हैं. जब से सरकार ने जीरो बजट खेती का मंत्र किसानों से साझा किया है, तभी से इन सभी चीजों की मांग बढ़ती जा रही है. ऐसे में बेसहारा पशुओं की मदद से गोबर-मौमूत्र का उत्पादन लेकर ये सभी चीजें बना सकते हैं और बाजार में बेच सकते हैं.
बंजर जमीन पर फैलेगी हरियाली
रसायनिक कीटनाशक और उर्वरकों के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता कम होती जा रही है. कई जमीनें लगभग बंजर हो गई हैं, जो किसी काम की नहीं. वैज्ञानिक भी कम होते फसल उत्पादन को लेकर चिंतित थे. तभी हमारे किसानों ने गोबर और गौमूत्र की तर्ज पर खेतों को फिर से हरा-भरा बना दिया. आज कई रिसर्च में साबित हो चुका है कि साल-दो साल लगातार गाय आधारित खेती करने पर बंजर-अनुपयोगी जमीन में भी हरियाली पैदा हो जाती है.
इससे बने जीवामृत, बीजामृत, घनामृत, पंचगव्य, नीमास्त्र से मिट्टी में नमी कायम रहती है, मिट्टी में जीवांशों की संख्या बढ़ती है और धीरे-धीरे भूजल स्तर भी बेहतर हो जाता है. सबसे अच्छी बात ये है कि इन सभी को बनाने और प्राकृतिक खेती करने में ज्यादा खर्च नहीं आता है. आज इस मॉडल पर आधारित खेती करके कई किसान ना के बराबर लागत में भी बेहतर उत्पादन ले रहे हैं.
इन राज्यों ने की तरक्की
वैसे तो आंध्र प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में भी प्राकृतिक खेती के लिए कई प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन इन दिनों छत्तीसगढ़ सबसे ज्यादा चर्चा में बना हुआ है. यहां पशुओं को सड़कों पर बेसहारा नहीं छोड़ा जाता, बल्कि गौठानों में उनका पालन-पोषण हो रहा है. इन पशुओं से मिले गोबर-मौमूत्र से यहां की महिलायें, किसान और युवाओं ने अच्छा मुनाफा कमाया है.
गोबर से कंपोस्ट और गौ मूत्र से कीटनाशक बनाकर यहां के ग्रामीण परिवेश खूब तरक्की की है. उत्तर प्रदेश में भी जल्द प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को गौशालाओं से एक देसी गाय दी जाएगी. मध्य प्रदेश में भी गाय आधारित खेती करने वाले किसानों को कई फायदे मिल रहे हैं. केंद्र सरकार ने भी प्राकृतिक खेती की जानकारी, नीतियां, योजनाएं किसानों से साझा कर रही है।
पंजाब में गाय सेस एक गड़बड़!
पंजाब सरकार 2016 से शराब, ईंधन और कुछ अन्य वस्तुओं पर गाय उपकर लगा रही है, लेकिन अभी तक एकत्रित किए गए पूरे राजस्व को गौशालाओं में गोजातीय देखभाल के उद्देश्य से जारी नहीं किया गया है।
पंजाब सरकार 2016 से शराब, ईंधन और कुछ अन्य वस्तुओं पर गाय उपकर लगा रही है, लेकिन अभी तक एकत्रित किए गए पूरे राजस्व को गौशालाओं में गोजातीय देखभाल के उद्देश्य से जारी नहीं किया गया है। उत्पाद शुल्क विभाग पर करीब 41 करोड़ रुपये, परिवहन विभाग पर 16 करोड़ रुपये और पीएसपीसीएल पर 520 करोड़ रुपये बकाया है।
2016 से शहरी स्थानीय निकायों द्वारा गाय उपकर के रूप में एकत्र किए गए लगभग 34 करोड़ रुपये में से, इस साल जुलाई तक मवेशियों को खिलाने के लिए केवल 25 करोड़ रुपये वितरित किए गए थे। 167 शहरी स्थानीय निकायों में से 52, पटियाला, बठिंडा, फिरोजपुर, लुधियाना, जालंधर और अमृतसर में अभी तक संबंधित शहरी निकायों द्वारा विभिन्न वस्तुओं पर लगाए गए गाय उपकर को अधिसूचित नहीं किया गया था।
राज्य में रियलिटी चेक
पंजाब सरकार ने अभी भी इस बड़ी चुनौती से निपटने के लिए कोई ठोस कार्य योजना नहीं बनाई है। सरकार द्वारा संचालित पशु पाउंड में गंभीर मुद्दे अनसुलझे हैं – धन की कमी, अपर्याप्त चारा, खराब बुनियादी ढांचा, प्रबंधन की कोई झलक नहीं। पंजाब में निजी तौर पर संचालित 510 गौशालाएं भी 3.84 लाख आवारा मवेशियों से भर रही हैं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 20 जिलों की गौशालाओं में 9,484 आवारा मवेशी हैं। एक जानकारी के अनुसार कुछ गौशालाओं को छोड़कर, अन्य का कम उपयोग किया जाता है। “1.25 लाख आवारा मवेशियों की अनुमानित क्षमता के मुकाबले, 20 आश्रय घरों में लगभग 14,000 आवारा मवेशी हैं। मुक्तसर में 10 बड़े शेड बनाए गए। लेकिन वहाँ केवल 350 गायें हैं
कंपाउंडिंग समस्या
पूछताछ से पता चला कि समस्या 22 जिलों में से प्रत्येक में सरकार द्वारा संचालित गौशालाओं के खराब उपयोग और निगरानी में है। विधानसभा के 2018 मानसून सत्र में, पशुपालन विभाग द्वारा साझा किए गए आंकड़ों से पता चला कि सरकार द्वारा संचालित गौशालाओं का उपयोग उनकी क्षमता का 50 प्रतिशत किया जा रहा था। आवारा पशुओं की बढ़ती समस्या के मद्देनजर स्थानीय निकाय विभाग ने गौशालाओं के उपयोग पर ताजा डेटा मांगा है। जबकि स्थानीय सरकारी विभाग प्रति मवेशी 15 रुपये से 30 रुपये तक की दैनिक सहायता जारी करता है, वास्तविक लागत लगभग 100 रुपये आती है।
गाय उपकर लगाया गया (2015 अधिसूचना के अनुसार)
चार पहिया और दोपहिया वाहनों की बिक्री पर क्रमशः 1,000 रुपये और 200 रुपये
आईएमएफएल की हर बोतल पर 10 रुपये
पंजाब निर्मित शराब और बीयर पर 5 रु
एसी मैरिज पैलेस में प्रति समारोह 1,000 रुपये
नॉन एसी मैरिज पैलेस के लिए 500 रुपये
तेल टैंकर पर प्रति चक्कर 100 रु
प्रति सीमेंट बैग 1 रु
2 पैसे प्रति यूनिट बिजली
नंबर कहानी बताते हैं
2012 की जनगणना के अनुसार, पंजाब में 1.10 लाख आवारा पशु हैं
पंजाब में 470 पंजीकृत गौशालाएं हैं
20 सरकारी पशु पाउंड स्थापित किए गए हैं
सरकारी स्वामित्व वाले गौशालाओं में 9,000 गायें हैं
खूनी सींग
वर्ष मौतें घायल
2016 102 57
2017 154 127
2018 114 42