दिल्ली में 27 साल बाद भाजपा सरकार बनने की राह पर, 48 सीटों पर बढ़त; शाह से मिलने पहुंचे प्रवेश वर्मा

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नई दिल्ली 8 फरबरी (सचित गौतम)

राजधानी दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 27 साल बाद सरकार बनाने की ओर कदम बढ़ा दिया है। नगर निगम चुनावों और विधानसभा चुनावों में लंबे समय तक संघर्ष के बाद भाजपा इस बार 48 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। अगर यह बढ़त बरकरार रहती है, तो पार्टी दिल्ली में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना सकती है।

भाजपा की इस ऐतिहासिक बढ़त के बीच पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा शनिवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने पहुंचे। सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में दिल्ली में नई सरकार के गठन और मुख्यमंत्री पद को लेकर चर्चा हुई। हालांकि, पार्टी की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

भाजपा की ऐतिहासिक वापसी

दिल्ली में भाजपा ने आखिरी बार 1998 में मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। लेकिन इसके बाद कांग्रेस और फिर आम आदमी पार्टी (AAP) ने सत्ता संभाली। इस बार, भाजपा ने आक्रामक चुनाव प्रचार और संगठनात्मक रणनीतियों के दम पर बड़ी बढ़त हासिल की है।

प्रवेश वर्मा की भूमिका अहम

प्रवेश वर्मा, जो पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं, दिल्ली भाजपा के बड़े चेहरे माने जाते हैं। उनके नेतृत्व में पश्चिमी दिल्ली में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया है। अमित शाह से उनकी मुलाकात के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं, और कयास लगाए जा रहे हैं कि वे मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदारों में से एक हो सकते हैं।

आप के लिए झटका, कांग्रेस हाशिए पर

आम आदमी पार्टी (AAP) इस चुनाव में कमजोर नजर आई, जबकि कांग्रेस लगभग हाशिए पर चली गई। अरविंद केजरीवाल की पार्टी को इस बार कई सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा की इस जीत में केंद्र सरकार की योजनाओं, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों की बड़ी भूमिका रही है।

आगे की रणनीति

भाजपा की कोर कमेटी जल्द ही बैठक कर आगे की रणनीति तय करेगी। माना जा रहा है कि पार्टी मुख्यमंत्री पद के लिए किसी अनुभवी नेता को चुन सकती है, लेकिन प्रवेश वर्मा की शाह से मुलाकात ने नए समीकरणों को जन्म दे दिया है।

अब सभी की नजरें अंतिम नतीजों और भाजपा की औपचारिक घोषणा पर टिकी हैं। यदि भाजपा सरकार बनाती है, तो यह दिल्ली की राजनीति में ऐतिहासिक बदलाव होगा।

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