पंजाब चुनाव 2022: अनुसूचित जाति के मतदाता बने पंजाब की सियासत का केंद्र, सभी दलों का इन्हीं पर फोकस

0

इस बार पंजाब के विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों के बीच अनुसूचित जाति फैक्टर महत्वपूर्ण बना है। हर सियासतदान अनुसूचित जाति का कार्ड खेल रहा है। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि पंजाब में हमेशा से ही विधानसभा और लोकसभा चुनावों में सूबे की एक तिहाई आबादी ही सत्ता का रास्ता तय करती है। राज्य की कुल 117 विधानसभा सीटों में से 34 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं लेकिन कुल 50 सीटें ऐसी हैं जिन पर अनुसूचित जाति का मत मायने रखता है।

इस बार चुनाव में करीब 25 साल बाद शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन हुआ तो पंजाब में अनुसूचित जाति की राजनीति को बल मिला। 1996 के लोकसभा चुनाव में अकाली दल और बीएसपी के बीच गठबंधन हुआ था। तब इस गठबंधन ने 13 लोकसभा सीटों में से 11 पर जीत दर्ज की थी।

1997 के विधानसभा चुनाव के वक्त यह गठबंधन टूट गया और शिअद ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था। यह गठबंधन दो दशक से ज्यादा चला। इस गठबंधन ने 15 साल पंजाब में सरकार चलाई। पिछले साल कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन की वजह से शिअद ने भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया था। इसके बाद एक बार फिर शिअद और बहुजन समाज पार्टी मिलकर पंजाब में चुनाव लड़ रही हैं।

राजनेता यह मान रहे हैं कि 1996 जैसे हालात 2022 में न हों, यही वजह है कि कांग्रेस समेत सभी दलों ने अनुसूचित जाति को केंद्र में रखकर अपनी चुनावी रणनीति बनाई है। इसी के मुताबिक प्रचार भी कर रहे हैं। कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में अनुसूचित जाति के चेहरे को अपना अगला सीएम घोषित कर दिया है। इससे पहले शिअद प्रधान सुखबीर बादल भी बसपा कोटे से अनुसूचित जाति के विधायक को उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर चुके हैं। अब भाजपा भी अनुसूचित जाति पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

मालवा में सबसे अधिक 19 सीटें

पंजाब में कुल आरक्षित 34 सीटों में सबसे अधिक मालवा में 19 आती हैं। यहां पर हमेशा ही अनुसूचित जाति का वोट बैंक निर्णायक रहता है। इसके अलावा माझा में सात और दोआबा में आठ विधानसभा सीटों में अनुसूचित जाति से जुड़े लोग ही भाग्य विधाता रहते हैं।

ये है सियासी समीकरण

2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में अनुसूचित जाति का प्रतिशत 31.9 है। इसमें 19.4 प्रतिशत अनुसूचित जाति सिख, 12.4 प्रतिशत अनुसूचित जाति हिंदू और .098 प्रतिशत बौद्ध अनुसूचित जाति शामिल हैं। इन अनुसूचित जाति समुदायों में 26.33 प्रतिशत मजहबी, 20.7 प्रतिशत रविदासिया और रामदसिया, 10 प्रतिशत आद-धर्मी और 8.6 प्रतिशत वाल्मीकि हैं।

बंटा हुआ है सूबे का अनुसूचित जाति वर्ग

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि देश में सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति पंजाब में हैं। यहां का एससी सिख और एससी हिंदू एक ही राजनीतिक दल को वोट नहीं देते हैं। वह अपनी पुरानी पार्टी के साथ अपने जुड़ाव और प्रतिबद्धताओं को लेकर चलते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ये भी पढ़ें