स्वामी विवेकानंद जन्मदिवस विशेष, एक सन्यासी और वैज्ञानिक की मुलाकात

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चंडीगढ (आज़ाद वार्ता)

यह बात सन् 1902 की है। अपने काशी प्रवास में स्वामी विवेकानंद ने बड़े गर्व से कहा कि” मैंने इतना कुछ कर दिया है जो डेढ़ हजार साल तक बना रहेगा।” चालीस साल से कम उम्र तक जीवित रहे स्वामी विवेकानंद के गुरु परमहंस रामकृष्ण जी को भी इस बात का पक्का भरोसा था कि नरेंद्र दुनिया को हिला कर रख देगा।
बता दें कि स्वामीजी के घर का नाम नरेंद्र दत्त था।

सन्यास ग्रहण के बाद वे दुनिया में विवेकानंद नाम से मशहूर हुए। स्वामी विवेकानंद के जीवनयात्रा में शिकागो के विश्व धर्म संसद में दिए उनके भाषण की चर्चा अक्सर होती है। पर इस यात्रा के दौरान और उनके अमेरीका प्रवास में जिन महाविभूतियों से उनकी भेंट, मुलाकात और चर्चा हुई, उसकी चर्चा कम ही होती है।

बात तो दरअसल वहां से शरू होनी चाहिए, जिस जहाज से स्वामी जी शिकागो की यात्रा पर थे। उस यात्रा में भारत के बड़े उघोगपति जमशेद जी टाटा के साथ स्वामी जी के बीस दिन बीते। जमशेद जी टाटा से बातचीत के सिलसिले में स्वामी विवेकानंद ने जमशेद जी टाटा से कहा कि मैटेरियल से तो बहुत पैसा कमा लोगे। भारत में उत्पादन की टेक्नोलॉजी आनी चाहिए, ताकि भारत को दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़े।

उस वक्त स्वामी विवेकानंद की उम्र 30 साल और जमशेद जी टाटा 51 साल के थे। पर भारत में एक सन्यासी के रूप में 12 साल की यात्रा कर चुकने के बाद भारत को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने की टीस उस वक्त कितनी गहरी रही होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इस यात्रा के दौरान हुई बातचीत और राय-मशविरा का ही नतीजा है कि झारखंड के जमशेदपुर में टाटा स्टील प्लांट की नींव पड़ी। इस यात्रा के दौरान ही भारत में एक ‘रिसर्च इंस्टीट्यूट’ खोलने की भी चर्चा हुई।

शुरूआती दौर में ब्रिटिश हुकूमत ने अनेक बाधाएं पैदा की। पर स्वामी विवेकानंद की योग्य शिष्या सिस्टर निवेदिता के प्रयासों से सन् 1909 में अंततः बेंगलुरु में ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस’ अस्तित्व में आया। इस संस्थान के लिए 372 एकड़ जमीन मैसूर के राजा कृष्णा वाडियार ने उपलब्ध कराई। सिस्टर निवेदिता और जमशेद जी टाटा ने इस संस्थान का पूरा खाका तैयार किया। पर दुर्योग ऐसा कि संस्थान बनने के पहले ही सन् 1902 में स्वामी विवेकानंद और सन् 1904 में जमशेद जी टाटा इस दुनिया से विदा हो गए।

सन् 1896 में अमेरीका में एक नाटक मशहूर हुआ। फ्रेंच भाषा में लिखित इस नाटक का नाम था “इजिएल” यह नाटक महात्मा बुद्ध के जीवन पर आधारित था। स्वामी विवेकानंद भी इस नाटक को देखने पहुंचे। यहीं पर स्वामी जी की मुलाकात बीसवीं सदी के महान वैज्ञानिक निकोला टेस्ला से हुई। टेस्ला के वैज्ञानिक चिन्तन पर स्पष्ट रूप से वेदांत का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। सन् 1907 में लिखे अपने लेख “मेन्स ग्रेटेस्ट अचीवमेंट” में वैज्ञानिक टेस्ला इस बात का उल्लेख करते है कि “सभी पदार्थ मूल रूप से एक ही तत्व से निकले हैं। इस तत्व की कोई शुरुआत नहीं है। सम्पूर्ण आकाश में यही फैला है और यह तत्व जीवन देने वाला प्राण या रचनात्मक ऊर्जा से प्रभावित होता है।”

स्वामी विवेकानंद रचनावली के भाग-5 में भी स्वामी विवेकानंद और वैज्ञानिक निकोला टेस्ला के मुलाकात की चर्चा है। स्वामी विवेकानंद इग्लैंड में अपने मित्र को लिखे एक पत्र में भी इस बात की चर्चा करते है कि अगले सप्ताह मैं मिलकर उनके गणितीय प्रयोग को देखना चाहता हूं।

बाद में भारत लौटने पर स्वामी विवेकानंद इस बात का जिक्र करते है कि वर्तमान में सबसे योग्य वैज्ञानिक ने भी वेदांत को विज्ञान सम्मत होना स्वीकार किया है। आज विज्ञान जिन निष्कर्षों पर पहुंच रहा है। यह बात पूरी तरह से मेल खाती है। वैज्ञानिक टेस्ला यह दावा करते हैं कि “बल और पदार्थ का ऊर्जा में स्थानांतरण सम्भव है। इसे गणितीय विधि से साबित भी किया जा सकता है।” अपने जीते जी निकोला टेस्ला इस बात को साबित नहीं कर पाए।

पर उनके बाद वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने इस फार्मूले को सिद्ध किया। आइंस्टीन की खोज E=mc2 से ही दुनिया को महासंहारक परमाणु अस्त्र और आणविक उर्जा की अपेक्षाकृत कम पर्यावरण प्रदूषित ऊर्जा की प्राप्ति सम्भव हुई। टेस्ला और बिजली बल्ब के आविष्कारक वैज्ञानिक एडिसन को लेकर भी यह बहस चलती ही है कि दुनिया के महान वैज्ञानिक कौन है वह जिसने दुनिया को बिजली के बल्ब से रोशन किया अथवा वह जिसने डी सी बिजली को ए सी (अल्टरनेट करेंट) में बदल कर बिजली को दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचना संभव किया?स्वामी विवेकानंद के अमेरीका पहुंचने से पहले टेस्ला ए सी की खोज कर चुके थे। निकोला टेस्ला के लिए “ब्रह्मांड बस एक महान फिल्म है, जो कभी अस्तित्व में आया और कभी खत्म नहीं होगा।” उनका भविष्य के वैज्ञानिकों के लिए सुझाव है कि यदि ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजना चाहते हो, तो ऊर्जा, आवृत्ति और कंपन के संदर्भ में खोजो। जिस दिन विज्ञान गैर भौतिक घटनाओं का अध्ययन करना शुरू कर देगा, वह अपने अस्तित्व की सभी शताब्दियों की तुलना में एक ही दशक में सबसे अधिक प्रगति करेगा।

वैदिक ऋषि दीर्घतस् अपने योग बल से यह देख पाए कि सूर्य के चारों ओर ऊर्जा का अक्षय भंडार है। आज पर्यावरण के लिहाज से सबसे सुरक्षित और सस्ती ऊर्जा का स्रोत ‘सौर ऊर्जा’ को ही माना जा रहा है। दुनिया में आज एक सूर्य, एक विश्व और एक ग्रिड की बात पुरजोर तरीके से उठ रही है। इस अर्थ में वैज्ञानिक टेस्ला की यह खोज भी महत्वपूर्ण होती जब वे बिजली के ऐसे टावर के निर्माण करने जा रहे थे। जहां बिना तारों के बिजली की अबाध आवाजाही सम्भव होती।

तब बिजली के बिना तारों की दुनिया आज की दुनिया से कितना अलग होती! इतिहास के जिस मोड़ पर एक धर्म प्रचारक सन्यासी और सदी के महान वैज्ञानिक के बीच समान विचारों का आदान-प्रदान हो रहा हो वह क्षण सचमुच कितना महत्वपूर्ण होगा! पर सच यह है कि कोई युग महज इस नाते महत्वपूर्ण नहीं होता कि इस युग में कितनी लड़ाइयां हुई। किस राजा-महाराजा को क्या कुछ हासिल हुआ, बल्कि इस नाते ज्यादा महत्वपूर्ण होता है कि उस युग विशेष ने किन महापुरुषों को पैदा किया? जिन महापुरुषों ने युग की धारा ही नहीं बदली, बल्कि जिनके सद्प्रयासों से युग परिवर्तन की धारा आने वाली कई शताब्दियों तक प्रवाहित होती रही।इस लिहाज से देखा जाए तो सन् 1893 का साल भारतीय इतिहास का ऐसा ही स्वर्णिम काल रहा है। सन् 1893 में ही महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर जाते हैं। स्वामी विवेकानंद का अमेरीका के शहर शिकागो के विश्व धर्म संसद में महत्वपूर्ण भाषण होता है। सन् 1893 में महर्षि अरविंद कैम्ब्रिज की शिक्षा पूरी कर भारत लौटते हैं। सन् 1893 में ही यूरोपीय सभ्यता के खोखलेपन, हृदयहीन शोषण और अमानवीय अन्याय-अत्याचार से पीड़ित- क्षुब्ध आयरिस महिला एनी बेसेन्ट भारत आती है।

ये सभी महाप्रभु-भगिनी भारत की आध्यत्मिक चेतना से ओतप्रोत होकर दुनिया को नया संदेश और नई दिशा देने की ओर उन्मुख दिखाई देते हैं। एक ऐसी धारा जो दुनिया को आधात्मिक चेतना से आप्लावित कर दें। जो आने वाली कई शताब्दियों तक दुनिया का मार्गदर्शन करती रहे। स्वामी विवेकानंद के शब्दों में ही कहें तो “हमें मनुष्य का निर्माण करने वाला धर्म चाहिए।”

हम सर्वत्र ऐसी शिक्षा चाहते हैं जो मनुष्य को ऊपर उठाए। हम ऐसे सिद्धान्त चाहते हैं जो मनुष्य के उन्नति का मार्ग बताएं। ऐसे विश्वासी-उत्साही सौ नवजवानों के बूते ही स्वामी विवेकानंद दुनिया को बदलने का संकल्प लेकर पैदा हुए। कम उम्र ही उनकी कृति की पताका दुनिया में फहराने लगी। आज दुनिया जिस भयावह दौर से गुजर रही है, उससे निजात पाने के लिए स्वामी विवेकानंद नए अवतार की आवश्यकता महसूस हो रही है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए आज़ाद वार्ता न्यूज पोर्टल उत्तरदायी नहीं है।

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