दुविधा में कांग्रेस पार्टी -हार के बाद भी खत्म नहीं हो रही कांग्रेस में कलह, नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर फंसा पेंच

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नई दिल्ली 29 मार्च 2022 (नवीन चन्द्र पोखरियाल,विवेक गौतम)

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी राज्यों में गुटबाजी से बाहर ही नहीं निकल पा रही है। गांधी परिवार के इस्तीफे की पेशकश को ठुकराकर सोनिया से ही पार्टी बदलाव की गुहार लगाने वाले नेता राज्यों में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं। हालांकि, हार के बाद सोनिया गांधी ने पांचों राज्यों के अध्यक्षों का इस्तीफा ले लिया, जिसके बाद नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष जैसे पदों पर आपसी विवाद इस कदर है, अब तक किसी की नियुक्ति आम सहमति से नहीं हो सकी। पार्टी के अंदर मचे घमासान के बीच अब माना जा रहा है कि सोनिया गांधी इन पदों पर जल्दी ही नियुक्तियां करेंगी।

यदि बात पंजाब की करें तो यहां आपसी विवाद चुनाव के वक्त ही जमकर हावी रहा और पार्टी धड़ाम हो गई। नवजोत सिंह सिद्धू, चरणजीत सिंह चन्नी, सुनील जाखड़ और मनीष तिवारी के आपसी टांग खिंचाई वाले बयान अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।

नए अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष नहीं चुना जा सका

यही कारण है कि आपसी मनमुटाव थामने के लिए पंजाब में नया अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष अब तक नहीं चुना जा सका है। असल में किसी एक नाम पर सहमति ही नहीं बन पा रही है। इसी वजह से असमंजस में आलाकमान ठोंक बजा कर फैसला करना चाहता है। वहीं बड़ी हार के बाद पुराने नेताओं को दरकिनार करके नए नेताओं को जिम्मेदारी देने पर विचार चल रहा है। इस समय रवनीत बिट्टू और राजा बरार सरीखे नेताओं के नाम भी चर्चा में हैं, लेकिन डर है कि, इस पर पुराने बगावत न कर बैठें।

उत्तराखंड में भी पार्टी का यही हाल है। हार के बाद भी प्रदेश अध्यक्ष पद और नेता प्रतिपक्ष पद के लिए हरीश रावत और प्रीतम सिंह गुट आमने-सामने हैं। यहां का मामला भी असहमति सामने आने के बाद सोनिया गांधी के पाले में है। सोनिया गांधी के ही पाले में मणिपुर और गोवा का भी मामला पेंडिंग है।

उधर दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में पार्टी के दो विधायक ही चुनाव जीते, जिसमें सीनियर मोना तिवारी को विधायक दल का नेता चुनने में पार्टी को दिक्कत नहीं आई। यानी जहां झगड़ने को कुछ ज्यादा बचा ही नहीं, ना ही ज्यादा नेता बचे।

सोनिया के जल्द फैसला लेने की उम्मीद

सूत्र बता रहे हैं कि आपसी समझ नहीं बन पाने के बाद जब सबने फैसला हाईकमान पर छोड़ दिया है तो जल्दी ही सोनिया अब नियुक्तियां कर देंगी।

वैसे फिलहाल तो कांग्रेस और सोनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती गुजरात और हिमाचल प्रदेश हैं, जहां साल के आखिर में चुनाव होने हैं। गुजरात में इसी के मद्देनदजर नए प्रभारी, नए अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति हो गईं, लेकिन संगठन का विस्तार होना बाकी है, जो सबको साधने की कोशिशों के चलते नहीं हो सका। वहीं हिमाचल में प्रदेश अध्यक्ष बदला जाना है, नियुक्ति के बाद आपसी तनातनी न हो, इसलिए सभी वरिष्ठ नेताओं की हाल में सोनिया से मुलाकात में उनका हर फैसला मानने का प्रस्ताव दिया गया।

कुल मिलाकर जहां भाजपा और आम आदमी पार्टी अपने मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल का गठन कर आने वाले चुनावी राज्यों में जुट गए हैं तो वहीं कांग्रेस अभी अपना घर दुरुस्त करने में ही उलझी हुई है।

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