कोचिंग केंद्रों की मनमानी पर शिक्षा मंत्रालय के दिशा-निर्देश के बाद अंकुश लगने की जगी उम्मीद
चंडीगढ (आज़ाद वार्ता)
पूरे देश में कोचिंग केंद्रों की एक समांतर शिक्षण व्यवस्था कायम है, जिस पर कोई तय नियम-कायदा लागू नहीं है। इसी का नतीजा है कि ये केंद्र अपने कारोबारी होड़ में न सिर्फ बढ़-चढ़ कर दावे करते, झूठे और भ्रामक प्रचार-प्रसार करते, बल्कि विद्यार्थियों को अंधी प्रतियोगिता में हांक देते हैं।इसके चलते विद्यार्थियों के मनोबल पर बुरा असर देखा जा रहा है।
उनमें खुदकुशी की प्रवृत्ति बढ़ रही है। कोचिंग केंद्रों में विद्यार्थियों के लिए बुनियादी सुविधाओं, सुरक्षा उपायों तक का ध्यान रखना जरूरी नहीं समझा जाता। बहुत सारे कोचिंग संस्थान तंग गलियों, छोटे-छोटे कमरों में चलाए जा रहे हैं, जहां किसी हादसे की स्थिति में बचाव का कोई इंतजाम नहीं होता। कुछ जगहों पर आग लगने से विद्यार्थियों की जान जाने का जोखिम पैदा हो गया।
इनमें पढ़ाने वाले अध्यापकों की योग्यता का भी कोई मानक तय नहीं होता। ऐसे संस्थान न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराते, बल्कि स्कूली शिक्षा, बोर्ड परीक्षा आदि में अच्छे अंक और रैंक दिलाने का दावा करते हुए भी चलाए जाते हैं। इस तरह प्राथमिक कक्षाओं के बाद ही बहुत सारे विद्यार्थी कोचिंग केंद्रों के आकर्षण में फंसते देखे जाते हैं। इन्हीं शिकायतों के मद्देनजर अब शिक्षा मंत्रालय ने कोचिंग संस्थानों को विनियमित करने का प्रयास किया है।
शिक्षा मंत्रालय ने दिशा-निर्देश जारी किया है कि कोई भी कोचिंग केंद्र सोलह वर्ष से कम आयु के बच्चों को दाखिला नहीं देगा। अगर कोई ऐसा करता है, तो उस पर एक लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जाएगा। इसके साथ ही वे अच्छे अंक या रैंक दिलाने के भ्रामक दावे भी नहीं कर सकेंगे। इन केंद्रों में स्नातक से कम योग्यता वाले अध्यापकों की नियुक्ति नहीं की जा सकेगी।
ये दिशा-निर्देश एक तरह से कोचिंग केंद्रों पर कानूनी शिकंजा कसने की मंशा से दिए गए हैं। देखने की बात है कि कोचिंग केंद्र इनका कितना पालन करते हैं। दरअसल, कोचिंग केंद्र व्यवस्थित शैक्षणिक संस्थानों के समांतर एक धंधे के रूप में विकसित हुए हैं। इनके लिए सरकार से किसी तरह की मान्यता लेने की जरूरत नहीं पड़ती।
कोई भी व्यक्ति अगर किसी विषय की बेहतर समझ रखता हो, तो वह कोचिंग शुरू कर देता है। अब तो हर शहर में बहुमंजिला और कई शाखाओं वाले कोचिंग संस्थान खुल गए हैं। जिन संस्थानों के नतीजे थोड़े बेहतर हैं, उनमें दाखिले के लिए भीड़ लगती है। राजस्थान के कोटा में तो कोचिंग संस्थानों का एक अलग शहर ही विकसित हो चुका है।
कोचिंग संस्थानों के इस विस्तार में अभिभावकों का भी कम योगदान नहीं माना जा सकता। दसवीं पास करते ही वे अपने बच्चों को इंजिनियरिंग, मेडिकल आदि की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग केंद्रों में दाखिला दिला देते हैं। इस तरह बहुत सारे बच्चों का पंजीकरण तो नियमित स्कूल में होता है, पर वे पढ़ाई के लिए कोचिंग केंद्रों पर जाते हैं।
इस पर रोक लगाने के लिए शिक्षा विभाग ने नियम बनाया था कि नियमित कक्षाओं के वक्त विद्यार्थी कोचिंग नहीं ले सकेंगे। मगर उसका कोई असर नहीं हुआ। कोटा के कोचिंग संस्थानों में खुदकुशी की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर राजस्थान सरकार ने आदेश दिया था कि कोई भी संस्थान साप्ताहिक परीक्षण नहीं करेगा, पर उसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अब शिक्षा मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के बाद कोचिंग केंद्रों की मनमानी पर कुछ अंकुश लगने की उम्मीद जगी है। मगर इस पर कड़ी नजर नहीं रखी गई, तो ये केंद्र फिर कोई गली निकाल लेंगे।