उत्तर प्रदेश : बीजेपी के ये पांच पांडव, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक जीत में निभाई अहम भूमिका

बीजेपी की यूपी में बंपर जीत ने विपक्ष को जहां बैकफुट पर ढकेल दिया है. वहीं, राजनीति के जानकार ये गुणाभाग करने में जुटे हैं कि आखिर बाजी पलट कैसे गई, जिस तरह अखिलेश की रैलियों में भीड उमड़ी थी आखिर वो वोटों में तब्दील कैसे नहीं हो पाई तो इसकी वजह बने बीजेपी के पांच पाण्डव जिन्होंने अपनी रणनीति से योगी की वापसी में बड़ी भूमिका निभाई.
प्रचंड जीत के 5 ‘पांडव’
बीजेपी की बंपर जीत और सत्ता में वापसी ने बड़े बड़े राजनीतिक पंडितों को बेचैन कर रखा है.
एक पार्टी को 37 साल बाद दोबारा वापसी का मौका मिला है. उत्तर प्रदेश में सवाल उठता है कि आखिर इस इतिहास की पटकथा लिखी किसने? क्या सिर्फ रैलियों और दौरों भर से ये इतिहास मुमकिन हो पाया तो इसके जवाब में भाजपा के पांच पांडवों का चेहरा सामने आता है, जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर बड़ा खेल कर दिया.
बीजेपी के ‘युधिष्ठिर’ (सुनील बंसल)
भारतीय जनता पार्टी के संगठन महामंत्री सुनील बंसल यूं तो राजस्थान के रहने वाले हैं, मगर 2013 से यूपी की कमान संभालने के साथ ही बंसल यूपी की नब्ज को बखूबी भांप चुके हैं. बसंल बूथ लेवल मैनेजमेंट के माहिर खिलाड़ी हैं. चुनाव से पहले 100 दिन 100 काम योजना भी बंसल के दिमाग की उपज रही है. इसी तरह वह यूपी चुनाव में टिकट वितरण से पहले दावेदारों को आगाह करते हुए नजर आते रहें. उन्होंने बूथ लेवल पर बंसल ने दलित, ओबीसी और महिलाओं को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया. इसके अलावा इनको मैनेज करने के लिए विस्तारकों को नियुक्त किया.नतीजा ये रहा कि जिन प्रत्याशियों के नाम के ऐलान में देरी भी हुई वहां भी विस्तारकों ने इतना काम कर दिया था कि प्रत्याशी के ऐलान के साथ ही वहां बीजेपी को लीड मिल गई.
बीजेपी के ‘भीम’ (संजीव बालियान)
यूपी की महाभारत में किसान आंदोलन एक बड़ा फैक्टर था. जाट नाराज थे. उपर से हाथरस में जब आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी को लाठी मारी गई उसके बाद माहौल और ज्यादा बिगड़ गया. बीजेपी के लिए इसके लिए भीम सी छवि रखने वाले एक बड़े सियासी योद्धा की जरूरत पड़ी और संजीव बालियान को इसकी जिम्मेदारी दी गई, जिसको उन्होंने बखूबी निभाया. संजीव बालियान ने जिम्मेदारी मिलते ही पश्चिमी यूपी की 136 सीटों को टारगेट पर लिया. चुनाव से ठीक पहले 25 जनवरी को 50 प्रमुख जाट नेताओं की अमित शाह से बैठक कराई. सैकड़ों छोटी-छोटी बैठकें की और जाट नेताओं को भरोसे में लिया. इसका जबरदस्त फायदा भाजपा को मिला. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे समाने आए तो पार्टी पहले चरण की 58 में से 46 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि दूसरे चरण में 55 में 30 सीटें बीजेपी के नाम रहीं. यानी यूपी की महाभारत में जाटलैंड को अपने पाले में करने की कठिन चुनौती संजीव बालियान ने बखूबी निभाई.
बीजेपी के ‘अर्जुन’ (लक्ष्मीकांत वाजपेयी)
महाभारत में अर्जुन ने बड़े महारथियों से मोर्चा लिया था. कुछ इसी अंदाज में नजर आए लक्ष्मीकांत वाजपेयी जिन्होंने दूसरे दलों के बड़े महारथियों को अपने साथ जोड़ने का काम किया. जिसका नतीजा सामने है. यूपी चुनाव से ठीक पहले लक्ष्मीकांत वाजपेयी को पार्टी की ज्वाइनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया. वाजपेयी ने दूसरे दलों के कद्दावर नेताओं को साधा और उन्हें पार्टी में ज्वाइन कराया. इस दौरान सबसे बड़ी बात यह रही कि वाजपेई ने किसी नेता को टिकट का आश्वासन नहीं दिया. मुलायम सिंह की बहू अपर्णा यादव इसका बड़ा उदाहरण हैं.लक्ष्मीकांत वाजपेयी की रणनीति का असर ये हुआ कि जिलों के छोटे बड़े नेता भी पार्टी में बिना शर्त आए जिससे छोटी मोटी बगावत की गुंजाइश भी बिल्कुल खत्म हो गई.
जब ‘नकुल’ की भूमिका में दिखे ( धर्मेंद्र प्रधान)
यूपी के चुनाव प्रभारी रहे धर्मेन्द्र प्रधान ने नकुल की भूमिका बखूबी निभाई. महाभारत में नकुल को अपनी सूझबूझ के लिए जाना जाता है. यूपी की महाभारत में धर्मेन्द्र प्रधान ने भी अपनी सूझबूझ से केशव प्रसाद मौर्या को लेकर बनाए गए माहौल को बिल्कुल खत्म कर दिया. साल 2017 में योगी सीएम बने, लेकिन डिप्टी सीएम केशव मौर्य के घर 22 जून 2021 को पहली बार गए, जबकि योगी और केशव का घर सिर्फ एक आवास की दूरी पर है. दोनों की मुलाकात धर्मेंद्र प्रधान ने कराई. इतना ही नहीं माइक्रो मैनेजमेंट का किरदार भी बखूबी निभाया. मैजिक पांच के तहत हर क्षेत्र में 5 लोगों को नियुक्त किया.जमीनी पर कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से सीधा संवाद पूरे चुनाव तक कायम रहा. नतीजा ये हुआ कि बूथ लेवल तक कार्यकर्ताओं का जोश हमेशा हाई रहा.
बीजेपी के ‘सहदेव’ (अंकित सिंह चंदेल)
महाभारत के पीछे चाल थी शकुनि की जिसे अंजाम तक पहुंचाया सहदेव ने. बीजेपी के सोशल मीडिया प्रभारी अंकित सिंह चंदेल ने भी यही किया और सोशल मीडिया पर बीजेपी के खिलाफ बने हर माहौल का काउंटर बखूबी किया. अंकित सिंह चंदेल ने चुनाव के छह महीने पहले फर्क साफ है का कैंपेन चलाया. जिसमें पुरानी सरकारों और योगी सरकार के कामों की तुलना की गई. इसके पीछे दिमाग अंकित सिंह का रहा. सोशल प्लेटफॉर्म पर अंकित सिंह की टीम ने जोरदार काम किया. किसानों से जुड़े पोस्ट की संख्या खूब बढ़ाई. सरकार के कामों का जमकर प्रचार किया. नतीजा ये हुआ कि विपक्ष ने सोशल मीडिया के जरिये जहां भी सरकार को घेरने की कोशिश की उसके काउंटर में बीजेपी की सोशल मीडिया टीम ने पोस्ट की बरसात कर दी.
कुल मिलाकर इस चुनाव में जितना बड़ा रोल बड़े नेताओं का रहा उससे कहीं कम योगदान पर्दे के पीछे रहकर खामोशी से काम करने वालों का भी नहीं रहा. नतीजा रणनीति के मामले में बीजेपी पूरे चुनाव में विपक्ष से सौ कदम आगे रही. नतीजा ऐतिहासिक जीत के तौर पर सामने आया.