नागा साधु के बारे मे ये पांच बातें जो आप नहीं जानते,आपको भी जान लेनी चाहिए ये रहस्यमयी बातें

चंडीगढ (आज़ाद वार्ता)
नागा साधु रहस्य और जीवन तथ्य: सनातन धर्म में साधु-संतों को ईश्वर प्राप्ति का साधन माना जाता है। संत-महानपुरों के वेश भिन्न होते हैं और वे भौतिक सुखों को त्याग कर सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हैं।
संत और साधु आमतौर पर लाल, पीले या भगवा रंग के कपड़ों में देखे जाते हैं।
लेकिन नागा साधु हमेशा नग्न कपड़ों में ही नजर आते हैं, वे कड़ाके की ठंड में भी कपड़े नहीं पहनते हैं। नागा का अर्थ है ‘नग्न’। नागा साधु जीवन भर बिना कपड़ों के रहते हैं और वे खुद को भगवान का दूत मानते हैं। आइए जानते हैं नागा साधु नग्न क्यों होते हैं इसकी वजह और नागा साधु के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य।
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⦁ नागा साधु प्रकृति और प्राकृतिक अवस्था को महत्व देते हैं। इसलिए वे कपड़े नहीं पहनते।
नागा साधुओं का मानना है कि मनुष्य नग्न पैदा होता है, अर्थात यह स्थिति स्वाभाविक है। इस भावना को धारण करने से नागा साधु हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं।
⦁ नागा साधु भी बाहरी वस्तुओं को अडिग मानते हैं।
⦁ नग्न अवस्था ही नहीं, शरीर पर भस्म और जटा जूट भी नागा साधुओं की पहचान होती है।
क्या नागा साधुओं को ठंड नहीं लगती?
जहां लोग हाड़ कंपा देने वाली ठंड से तड़पते हैं, वहीं नागा साधु हर मौसम में बिना कपड़ों के रहते हैं। ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि नागा साधुओं को ठंड नहीं लगती? दरअसल, इसके पीछे का राज क्या है?
नागा साधु तीन तरह के योगाभ्यास करते हैं, जो ठंड से बचने में मददगार साबित होते हैं। ये अपने विचारों और खान-पान पर भी नियंत्रण रखते हैं। इसके पीछे यह तथ्य है कि मानव शरीर को इस तरह से बनाया गया है कि जिस वातावरण में आप शरीर को ढालेंगे, शरीर उसी के अनुरूप ढल जाएगा। यह सब अभ्यास है। नागा साधुओं ने भी अपने शरीर को ऐसा बनाया है कि अभ्यास से उन्हें ठंडक नहीं लगती।
नागा साधुओं के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य
⦁ नागा साधु बनने की प्रक्रिया में 12 साल लगते हैं, जिनमें से 6 साल महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इस बीच, उन्हें नागा पंथ में शामिल होने के बारे में आवश्यक जानकारी मिलती है और जानकारी प्राप्त करते समय वे लंगोटी के अलावा कुछ भी नहीं पहनते हैं। कुंभ मेले में मन्नतें लेने के बाद वे लंगोटी भी छोड़ देते हैं और जीवन भर नग्न रहते हैं।
⦁ नागा साधु बनने के लिए सबसे पहले उन्हें ब्रह्मचर्य सीखना होगा। इसमें सफल होने के बाद उसे महापुरख दीक्षा दी जाती है और फिर वह यज्ञोपवीत बन जाता है। इसके बाद वे अपना और अपने परिवार का पिंडदान करती हैं। इस प्रक्रिया को ‘बिजवान’ कहा जाता है। यही कारण है कि नागा साधुओं के लिए सांसारिक परिवार महत्वपूर्ण नहीं होता, वे समाज को अपना परिवार मानते हैं।
⦁ नागा साधुओं का कोई खास स्थान या घर नहीं होता है। झुग्गियां बनाकर अपना गुजारा करते हैं। वे सोने के लिए बिस्तर का भी इस्तेमाल नहीं करते, बस जमीन पर सोते हैं।
⦁ नागा साधु एक दिन में 7 घरों से भिक्षा मांग सकते हैं। इन घरों से भीख मिल जाए तो ठीक, नहीं तो भूखे रहना पड़ता है। वे पूरे दिन में एक बार ही भोजन करते हैं।
⦁ नागा साधु हिंदू धार्मिक भिक्षु हैं जो हमेशा नग्न रहने और मार्शल आर्ट में कुशल होने के लिए जाने जाते हैं। विभिन्न अखाड़ों में इनका निवास है। जूना अखाड़े में सबसे ज्यादा नागा साधु हैं। नागा साधुओं के अखाड़े में रहने की परंपरा की शुरुआत आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी।