उत्तराखंड ; 19 मार्च -मुख्यमंत्री का चयन-हाईकमान का फैसला चौंकाने वाला-मोदी मैजिक से जीते विधायको की सीएम, मंत्री बनने की लांबिग

Uttarakhand CM NOMINATION 2022: 19 मार्च २०२२ को विधायक दल की मीटिंग बुलाई जाएगी, जिसमें नए सीएम के नाम पर आधिकारिक मुहर लग जाएगी और फिर 20 मार्च को शपथ ग्रहण समारोह होगा. बीजेपी संगठन द्वारा नवनिर्वाचित विधायकों को होली के बाद देहरादून में रहने का निर्देश दिया गया है.” होलाष्टक समाप्त होने पर नए मुख्यमंत्री को शपथ दिलाई जाएगी।

उत्तराखंड में भी बीजेपी की सरकार बन रही है, लेकिन जीत मोदी के नाम पर हुई. अधिकांश विधायक मोदी मैजिक की बदौलत ही जीतने में कामयाब रहे हैं। CSDS के सर्वे की मानें तो 40 फीसदी लोगों ने मोदी के नाम पर बीजेपी को वोट दिया. उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के चयन में भाजपा हाईकमान का फैसला चौंकाने वाला हो सकता है। भाजपा कई विकल्प पर विचार कर रही है। जिन नेताओं को मुख्यमंत्री का दायित्व दिया गया, उन्हें भी अंतिम क्षणों में जाकर खबर लगी।
माना जा रहा है कि इस बार भी पहले की तरह ही अप्रत्याशित चेहरा सामने आ सकता है। सीएम का नाम केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा।
उत्तराखंड में सिर्फ ‘मोदी लहर’ से सत्ता में वापसी हुई है, और उत्तराखंड चुनाव में बीजेपी को प्रचंड जीत मिली है . लेकिन प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा इसपर अभी भी संशय बरकरार है . करीब आधा दर्जन से नाम सीएम की रेस में चल रहे हैं . तो वहीं 19 मार्च को विधानमंडल दल की बैठक हो सकती है . और 20 मार्च को विधानमंडल दल के नेता का चयन भी हो सकता है . बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि उत्तराखंड का मुख्यमंत्री विधायकों में से ही चुना जाएगा
19 मार्च को देहरादून में विधानमंडल दल की बैठक हो सकती है। पार्टी द्वारा बनाए गए पर्यवेक्षकों को 19 तारीख को देहरादून भेजा जा सकता है, जहां वह विधायकों से चर्चा कर मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा कर सकते हैं, माना जा रहा है कि 20 मार्च को नए मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल के साथ शपथ भी ले सकते हैं।
उत्तराखंड चुनाव में बीजेपी ने 48 सीटें जीती हैं, जबकि18 सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं. 4 चार सीटें अन्य दलों को मिली हैं. खटीमा विधानसभा सीट से सीएम पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए हैं. उन्हें कंग्रेस के भुवन कापड़ी ने 6951 मतों से हराया है. उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के अंतर्गत श्रीनगर विधानसभा सीट से धन सिंह रावत ने कांग्रेस के गणेश गोडियाल को 587 वोटों से हराया जबकि उत्तराखंड की चौबट्टाखाल सीट बीजेपी उम्मीदवार और कैबिनेट मंत्री रहे सतपाल सिंह रावत (सतपाल महाराज) ने कांग्रेस के केसर सिंह को 11,430 वोटों से मात दी है

उत्तराखंड में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मैजिक उत्तराखंड में चला है. बीजेपी ने इस चुनाव में मिथक भी तोड़े हैं. उन्होंने कहा कि होली के बाद बीजेपी विधानमंडल दल की बैठक होगी और उसमें ही नेता का चयन किया जाएगा.
बीजेपी के उत्तराखंड पर्यवेक्षक धर्मेंद्र प्रधान और पीयूष गोयल बनाए गए हैं जो 19 मार्च को देहरादून जाएंगे. जानकारी के मुताबिक, होली के अगले दिन उत्तराखंड में विधायक दल की बैठक हो सकती है जिसमें मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगेगी. इस रेस में पुष्कर सिंह धामी, धन सिंह रावत, सतपाल महाराज, रितु खंडूरी, गणेश जोशी समेत कई नाम शामिल हैं. पुष्कर धामी के विधानसभा चुनाव हार जाने के वबजूद कई विधायक धामी के पक्ष में सीट खाली कर चुनाव लड़ाने की पेशकश कर चुके हैं.
सभा सांसद अनिल बलूनी को भाजपा मुख्यमंत्री बना कर राज्य में ब्राह्मण कार्ड खेल सकता है।
बता दें, उतराखंड की राजनीति में बीजेपी ने इस बार दोबारा सत्ता में ना लौटने का पुराना रिकॉर्ड तो तोड़ दिया, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की हार के बाद राज्य में मुख्यमंत्री के चुनाव हारने का रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाई. लिहाजा एक साल में चौथी बार बीजेपी के सामने मुख्यमंत्री चुनने की चुनौती आन पड़ी है. सीएम बनने की चाहत में कई नेताओं ने दिल्ली में डेरा डाला हुआ है. नए मुख्यमंत्री की रेस में चेहरे और दावेदार तो तमाम हैं, लेकिन खबरों में अब भी पुष्कर सिंह धामी ही बने हुए हैं.
केंद्र के कुछ बड़े नेता चुनाव हार चुके पुष्कर धामी के पक्ष में खड़े हैं, जो उन्हें दोबारा चुनाव लड़ाकर मुख्यमंत्री बनाने का समर्थन कर रहे हैं. तो इस बीच खुद धामी भी इशारों में अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.

उत्तराखंड में अब तक नौ मुख्यमंत्री (भुवन चंद्र खंडूडी दो बार) रहे हैं नौ नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड देश के 27वें राज्य के रूप में वजूद में आया। तब उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले 30 सदस्यों को लेकर अंतरिम विधानसभा का गठन किया गया। इस अंतरिम विधानसभा में भाजपा का बहुमत था, तो पहली अंतरिम सरकार बनाने का अवसर भी भाजपा को ही मिला। नित्यानंद स्वामी को अंतरिम सरकार का मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके साथ ही नवगठित राज्य में सियासी अस्थिरता की बुनियाद भी पड गई। पार्टी में गहरे अंतरविरोध के कारण स्वामी अपना एक साल का कार्यकाल भी पूर्ण नहीं कर पाए और उन्हें पद छोड़ना पड़ा। स्वामी के उत्तराधिकारी के रूप में उनकी कैबिनेट के वरिष्ठ सहयोगी रहे भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में सरकार की कमान संभाली। कोश्यारी लगभग चार महीने ही इस पद पर रह पाए, क्योंकि वर्ष 2002 की शुरुआत में हुए पहले विधानसभा चुनाव में मतदाता ने भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। राज्य को अब 70 विधानसभा सीटों में बांट दिया गया था और पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इसमें से 36 सीटें हासिल हुईं। इसके बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने रावत पर नारायण दत्त तिवारी को तरजीह देकर मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। नाममात्र के बहुमत के बावजूद तिवारी पूरे पांच साल तक सरकार चलाने में कायमयाब रहे।