कृषि कानून मोदी-आखिर क्या हैं कृषि कानून की वापसी के कारण और क्या होंगे उसके परिणाम

0

जब तक देश का कृषि क्षेत्र उन्नत नहीं होगा सम्पूर्ण देश गरीबी के दुष्चक्र से बाहर नहीं आएगा।

पाकिस्तान-चीन ने किसानों में फैलाया प्रोपेगेंडा, राहुल-अखिलेश- ममता-केजरीवाल… सबका दुष्प्रचार यथार्थ पर भारी

नई दिल्ली 20 नवम्बर (नवीन चन्द्र पोखरियाल,सचित गौतम)

कहते हैं कि यदि हमें असली युद्ध जीतना है तो कभी-कभार अपने कदम पीछे खींचना आवश्यक होता है, छद्मयुद्ध जीतना हो तो कभी- कभी कुछ मोर्चों से पीछे हटना ज़रूरी होता है। अच्छे सेनापति वो ही होते हैं जो किसी एक मोर्चे पर अटक कर नहीं रह जाते। वे अपनी लक्ष्य सिद्धि के सदा नए-नए रास्ते तलाशते है।

देश में लम्बे समय से एक युद्ध चल रहा है और वह है ग्रामीण विपन्नता के साथ युद्ध। जब तक देश का कृषि क्षेत्र उन्नत नहीं होगा सम्पूर्ण देश गरीबी के दुष्चक्र से बाहर नहीं आएगा। दशकों से किसान संगठन, अर्थशास्त्री और कृषि विशेषज्ञ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार की माँग कर रहे थे। तीन कृषि कानून उसी लम्बे विमर्श के नतीजे में आये थे। पर कोई भी युद्ध बिना सैनिकों की भागीदारी के जीता नहीं जा सकता।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधार के इस युद्ध में किसान एक तरह से अग्रिम पंक्ति के सैनिक ही हैं और हमेशा ही रहेंगे भी। हमारे देश के एक यथार्थवादी प्रधानमंत्री आदरणीय लाल बहादुर शास्त्री जी ने देश को भारत-चीन युद्ध में एक शक्तिशाली नारा दिया था, “जय जवान, जय किसान।”

पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश अन्न उपजाने के मामले में देश का अग्रणी हिस्सा है। पंजाब देश का सीमावर्ती राज्य होने के कारण बेहद संवेदनशील प्रान्त है। इस भूभाग के किसानों को सरकार समझा ही नहीं पाई कि किसान कानून उनके हित में हैं। कई विरोधी ताकतें, जिनमें देश के दुश्मन पाकिस्तान और चीन शामिल है, ये प्रोपेगंडा फैलाने में सफल रहे कि तीनों कानून उनके खिलाफ हैं। पंजाब बड़े समय तक आतंकवाद भी झेल चुका है। चाहे मुट्ठीभर ही सही, पर वहाँ विदेश पोषित कुछ तत्व तो है ही जो राष्ट्रद्रोही अलगाववादी मनोवृत्ति रखते हैं। इन्होंने किसानों के असंतोष की आग में खूब घी डाला। इन्हें और इन्हें समर्थित राजनीतिक दलों को विदेशी फंडिंग मिलती रही है यह सर्वविदित है।

कृषि बिल विरोध की आड़ में पंजाब में हिन्दू सिख भाईचारे को भी नुकसान पहुँचाने की भरसक कोशिश हुईं। 26 जनवरी की लाल किले की घटना को इससे जोड़कर देखा जा सकता है। पाकिस्तान ने इस दौरान वहाँ की शांति में खलल डालने के लिए ड्रोन द्वारा हथियार भी भेजे। इसका जिक्र पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने लगातार किया है। खालिस्तान के नाम पर चले आतंकवाद के उस दौर को दोहराने के लिए कई तत्व आमादा हैं। इसकी अनदेखी कोई सरकार नहीं कर सकती। इसी सिलसिले में एनआईए की एक टीम पिछले दिनों कनाडा में थी। उसका फीडबैक भी महत्वपूर्ण रहा होगा। पंजाब में अमन चैन से बड़ा कोई कृषि सुधार नहीं हो सकता।

कृषि सुधारों से एक बड़े बिचौलिए वर्ग को भी कठिनाई हो रही थी। सरकार अपने संवाद की विफलता का विपक्ष को दोष नहीं दे सकती क्योंकि दूसरे दलों का तो काम ही विरोध करना है। कुल मिलाकर इन सबका एक घातक मिश्रण बन गया। स्वभावतः सरल ग्रामीण मन को इन सब ने बरगलाया और एक बात इस भूभाग के किसानों के मन में बिठा दी कि ये कानून उनकी जमीन तक हड़पने के औज़ार बन सकते हैं। किसान अपनी ज़मीन से अपनी संतान से भी ज़्यादा लगाव रखता है। बात चाहे गलत ही थी, पर कई बार दुष्प्रचार भी यथार्थ से अधिक शक्तिशाली बन जाता है। सरकार और भाजपा का प्रचार तंत्र इसके सामने बौना पड़ गया। इस बीच केंद्र सरकार सिर्फ कृषि कानून विरोध को विपक्षी दलों का प्रचार मानकर अपनी धुन में ऐंठी रही।

वैसे बीजेपी को उसी समय चेत जाना चाहिए था जब उसका सबसे पुराना सहयोगी अकाली दल पंजाब में इस मुद्दे पर गठजोड़ तोड़कर केंद्र सरकार से अलग हो गया था। जहाँ एक और सरकार किसानों से संवाद में विफल रही वहीँ दूसरी और ये एक बड़ी राजनीतिक विफलता भी थी। इस राजनीतिक विफलता का शिकार भाजपा महाराष्ट्र में पहले शिवसेना के साथ करके एक बड़ा राज्य गँवा ही चुकी है। गठबंधन धर्म के मर्म को समझने में विफलता तथा उससे उत्पन्न संकेतों को न पढ़ पाने पर तुलसीदास की एक पंक्ति कही जा सकती है – ‘सत्ता मद केहि नहिं बौराया।’

विशेषकर विदेशी फंडिंग पाने वाले विपक्षी दल कह रहे हैं कि मोदी ने ये फैसला उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा व अन्य राज्यों के चुनावों के मद्देनज़र किया है। ऐसा किया है भी तो इसमें गलत क्या है। राजनीतिक दलों का काम ही हैं कि वे जनता की नब्ज़ पहचाने और उसके अनुसार अपनी नीतियों में बदलाव करें। चुनाव जीतने के लिए कोशिश करना उनका मूल धर्म है। मोदी ने चुनाव जीतने के लिए अगर ये ऐलान किया है, तो क्या अखिलेश यादव, राहुल गाँधी, मायावती, ममता बनर्जी, केजरीवाल आदि रामनामी ओढ़ कर संन्यास पर जाने के लिए किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे थे?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरु पर्व पर राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में संवाद की सरकारी विफलता को ठीक पहचाना और तीनों कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर जता दिया कि वे सच्चे मायनों में जनता के मन को पढ़ना जानते हैं। मोदी सदा फ्रंटफुट पर खेलते आये हैं। इस नाते इस बड़े फैसले को अपने ऊपर ओढ़कर उन्होंने बड़े मन और लचीलेपन का भी परिचय दिया। इस सम्बोधन की भाषा, शैली और हावभाव ने उनका कद और बढ़ा दिया है। अपनी बात से पीछे हटने के लिए, वह भी सार्वजनिक तौर पर, बड़ा कलेजा और साहस चाहिए। मोदी जैसा बड़ा नेता ही ऐसा कर सकता है। इसलिए ये एक साहसी निर्णय है जो उनके जैसे कद्दावर नेता के ही बूते की बात है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ये भी पढ़ें