हैदराबाद या भाग्यनगर: कौन थीं भाग्यमती, क्या है सुल्तान से रिश्ते की कहानी? समझें इतिहास

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद को ‘भाग्यनगर’ बताया। इसके बाद से ही हैदराबाद का नाम बदलने को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने हैदराबाद का नाम भाग्यनगर करने की मांग की है।

पीएम मोदी ही नहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इसका जिक्र कर चुके हैं। अब समझते हैं कि आखिर हैदराबाद से क्यों जुड़ते हैं भाग्यमती के तार और क्या कहते हैं इतिहासकार?

कौन थीं भाग्यमती और सुल्तान से क्या था रिश्ता?
इस शहर का नाम ‘भागनगर’ या ‘भाग्यनगर’ होने को लेकर कई कहानियां हैं, जिनके तार 1590 के समय और मुगल शासक कुली कुतुब शाह से जोड़कर देखे जाते हैं। कहा जाता है कि भाग्यमती या भागमती नर्तकी थी, जिससे राजकुमार को बेहद प्यार था। सिंहासन हासिल करते ही उन्होंने शहर का नाम बदलकर अपनी मोहब्बत के नाम पर कर दिया था।

कहा जाता है कि उन्हें नर्तकी से इतना प्यार था कि वह मुलाकात के लिए मुसी नदी पार कर जान जोखिम में डालकर मिलने जाते थे। जब गोलकुंडा के शासक सुल्तान इब्राहिम गुली कुतुब शाह को यह बात पता लगी तो उन्होंने मुसी पर एक पुल (पूर्णपुल) का निर्माण करा दिया।

क्या कहते हैं इतिहासकार
इतिहासकार और सेना में सेवाएं दे चुके कैप्टन एल पांडुरंग रेड्डी इस तरह के दावों से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि कुली कुतुब शाह ने 1580 में जब गद्दी संभाली तो उनकी उम्र 12 या 14 होगी और पुल 18 महीनों बाद 1578 में बनकर तैयार हुआ था। ऐसे में जब उनके पिता को उनकी मोहब्बत की जानकारी लगी तो राजकुमार 8-10 साल के होंगे।

उस दौरान घटनाओं के बारे में जानकारी का संग्रह करने वाले निजामुद्दीन और फरिश्ता ने भी भागमती या भागमसि को ‘वैश्या’ बताया था। साथ ही उन्होंने उनके नाम पर शहर का नाम बदलने की घटना का जिक्र नहीं किया।

एक दावा यह भी
रेड्डी कहते हैं कि महामारी के दौरान गोलकुंडा के शासकों किले से लेकर चिकलम में अस्थाई जगहों पर शरण ली थी। उस दौरान शासकों ने कई बगीचों तैयार किए थे। इनमें बागलिंगमपल्ली, नसीर बाग, पूल बाग समेत कई बगीचों का नाम शामिल है।

रेड्डी कहते हैं कि 1584 में गोलकुंडा में और 1603 में दारू की सल्तनत हैदराबाद में जारी सिक्कों में भी भागनगर का जिक्र नहीं मिलता है। उन्होंने कहा, ‘सारंगू तमैया, राजा मल्ला रेड्डी या भक्त रामदास ने भी कभी भागमती का जिक्र नहीं किया।’ वह कहते हैं कि 1973 में आंध्र प्रदेश सरकार की सरकार के तहत प्रकाशित हुई किताब ‘हिस्ट्री ऑफ मेडीवल डेक्कन’ भी भागमती और भाग्यनगर को लेकर चल रहे मिथकों को तोड़ती है।

मंदिर का एंगल भी समझें
चारमीनार के पास स्थित भाग्यलक्ष्मी मंदिर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह समेत कई बड़े नाम पहुंच चुके हैं। सिकंदराबाद से सांसद जी किशन रेड्डी दावा करते हैं कि यह मंदिर 1591 में बने चारमीनार से पहले का है। हालांकि, इसे लेकर भी सवाल उठते रहे हैं।

इस मंदिर की देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण करता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ASI ने इसे अनधिकृत निर्माण भी बताया है। साल 2013 में तेलंगाना हाई कोर्ट ने इस मंदिर के विस्तार पर रोक लगा दी थी। कुछ अन्य रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हैदराबाद शहर में पहले चारमीनार आया। इसके बाद बादशाही अशूर खाना, जामा मस्जिद समेत अन्य जगहों का निर्माण हुआ।

रिपोर्ट्स में डेक्कन हेरीटेज ट्रस्ट के सदस्यों के हवासे से कहा गया है कि भागमती के पसंदीदा रानी या हैदर महन की उपाधी हासिल करने का कोई सबूत नहीं है। वहीं, तेलंगाना आर्काइव्स के दस्तावेजों के हवाले से बताया जाता है कि तस्वीरें और सिक्के इस बात का सबूत देती हैं कि हैदराबाद पहली बार 1603 में राजधानी बना था। साथ ही कुतुब शाही मुगल और आसिफ जाही राजवंशों ने लगातार हैदराबाद के नाम का इस्तेमाल किया है।

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