21 तोपों की सलामी:क्यों और किसे दी जाती है 21 तोपों की सलामी? भारत में कब और कैसे शुरू हुई यह परंपरा

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तमिलनाडु के कन्नूर में हेलीकॉप्टर (Helicopter Crash) हादसे में जान गवांने वाले भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत का आज अंतिम संस्कार होगा.

प्रोटोकॉल के अनुसार उन्हें तोपों की सलामी दी जाएगी. तोपों की सलामी को लेकर अक्सर मन में ये सवाल उठते होंगे कि आखिर ये क्यों दी जाती है इसके पीछे क्या वजह है. अलग-अलग मौकों पर तोपों की संख्या अलग क्यों होती है? आज हम आपको बताते हैं इसके पीछे क्या वजह है?

यह सम्मान (state honor) देने की एक प्रक्रिया है. जिसका फैसला सरकार करती है किसे राजकीय सम्मान देना है किसे नहीं. राजनीति, साहित्य, कानून, विज्ञान और कला के क्षेत्र में योगदान करने वाले शख्सियतों के निधन पर राजकीय सम्मान दिया जाने लगा है. गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस सहित कई अन्य मौकों पर तोपों की सलामी (Gun salute) दी जाती है. विशेष मौकों पर तोपों की सलामी देकर सम्मान दिया जाता है. वहीं भारतीय सेना के सैन्य सम्मान उन सैनिकों को दी जाती है जिन्होंने शांति अथवा युद्ध काल में अपना विशेष योगदान दिया हो. राजकीय सम्मान (state honor) में भी तोपों की सलामी दी जाती है.

राजकीय सम्मान (state honor)

दिवंगत को राजकीय सम्मान अंतिम संस्कार (Funeral) के दौरान दिया जाता है उस दिन को राष्ट्रीय शोक के तौर पर घोषित कर दिया जाता है. भारत के ध्वज संहिता के अनुसार राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया जाता है. दिवंगत के पार्थिव शरीर को राष्ट्रीय ध्वज के ढक दिया जाता है और बंदूकों की सलामी भी दी जाती है.

किसे दी जाती है कितने तोपों की सलामी?

भारत के राष्ट्रपति, सैन्य और वरिष्ठ नेताओं के अंतिम संस्कार के दौरान 21 तोपों की सलामी दी जाती है. हाई रैंकिंग सेना अधिकारी (नेवल ऑपरेशंस के चीफ और आर्मी और एयरफोर्स के चीफ ऑफ स्टाफ) को 17 तोपों की सलामी दी जाती है.

अंतिम संस्कार प्रोटोकॉल (funeral protocol)

अंतिम संस्कार के दौरान प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है. लेकिन, वह कौन सा प्रोटोकॉल है जो यह तय करता है कि राजकीय अंतिम संस्कार किसे मिलेगा और कैसे? आमतौर पर राजकीय सम्मान अंतिम संस्कार ( state funeral protocol) वर्तमान और पूर्व राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और राज्य के मुख्यमंत्रियों को दिए जाते हैं. एक राजकीय अंतिम संस्कार की कुछ मुख्य विशेषताओं में, बंदूक की सलामी (gun salute) और आधे मस्तूल पर झंडों के अलावा, राज्य या राष्ट्रीय शोक दिवस की घोषणा, एक सार्वजनिक अवकाश और शव के ताबूत को राष्ट्रीय ध्वज के साथ लपेटा जाना शामिल है.

हाल के दिनों में नियम बदले गए हैं ताकि राज्य सरकारें तय कर सकें कि व्यक्ति के कद ,पद और देश की सेवा के आधार पर किसे राजकीय सम्मान अंतिम संस्कार दिया जा सकता है. भारत में मे सबसे पहली बार राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार की घोषणा महात्मा गांधी के लिये की गयी थी. तब तक अंतिम संस्कार के राजकीय सम्मान का प्रोटोकॉल और दिशा निर्देश नहीं बने थे.

तोपों की सलामी का इतिहास

भारत को 21 तोपों की सलामी की परंपरा ब्रिटिश साम्राज्य से विरासत में मिली है. आजादी से पहले सर्वोच्च सलामी 101 तोपों की सलामी थी जिसे शाही सलामी के रूप में भी जाना जाता था जो केवल भारत के सम्राट (ब्रिटिश क्राउन) को दी जाती थी. इसके बाद 31 तोपों की सलामी या शाही सलामी दी गई. यह महारानी और शाही परिवार के सदस्यों को पेश किया गया था. यह भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल को भी पेश किया गया था. 21 तोपों की सलामी राज्य के प्रमुख और विदेशी संप्रभु और उनके परिवारों के सदस्यों को पेश किया गया था.

राष्ट्रपति के रूप में गणराज्य भारत के राज्य प्रमुख को कई अवसरों पर 21 तोपों की सलामी से सम्मानित किया जाता है. शपथ ग्रहण समारोह के बाद हर नए राष्ट्रपति को इसी सलामी से सम्मानित किया जाता है. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रपति, दोनों को स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के दौरान 21 तोपों की सलामी से सम्मानित किया जाता है.

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