पंजाब में टूटा पराली जलाने की घटनाओं का रिकॉर्ड, आखिर क्यों हो रहा ऐसा?

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चंडीगढ़ (आज़ाद वार्ता)

पराली जलाने (Stubble Burning) की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है. जबकि ऐसा करने से खेतों की उर्वरा शक्ति खराब होती है. पंजाब के किसान इस मामले में सबसे आगे हैं. सवाल ये है कि क्या सरकार ने वहां पराली निस्तारण के सबसे सस्ते विकल्प पूसा डीकम्पोजर का प्रचार नहीं किया?

इस साल 15 सितंबर से 06 नवंबर के बीच छह राज्यों में कुल 41463 जगहों पर पराली जलाई गई है, जिनमें से अकेले 32,879 पंजाब में हुई हैं.

आलोचना के बाद चालान का फैसला

इसके लिए देश भर में आलोचना शुरू होने के बाद वहां के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पराली जलाने वाले किसानों का चालान काटने का फैसला लिया है. जबकि किसान नेताओं का कहना है कि पराली जलाने की घटनाओं पर रोक लगानी है तो किसानों को आर्थिक मदद देनी पड़ेगी.

हरियाणा का योगदान भी कम नहीं

धान के अवशेषों को जलाने के कारण सक्रिय आग की घटनाओं की निगरानी उपग्रह रिमोट सेंसिंग का उपयोग करके की जा रही है. केंद्र सरकार के मुताबिक
15 सितंबर से 6 नवंबर के बीच हरियाणा में 4216, यूपी में 1771, राजस्थान में 264 और एमपी में 2333 जगहों पराली जलाई गई है. जबकि अब तक दिल्ली में एक केस भी केस नहीं है.

किन राज्यों में कम हुईं घटनाएं

पंजाब, हरियाणा, यूपी, दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश में दर्ज कुल पराली जलने की घटनाएं 2020 की तुलना में अब तक 42.3 फीसदी कम हैं.
पंजाब में 43.8, यूपी में 0.6 परसेंट, दिल्ली में 100 फीसदी, राजस्थान में 71.6% और एमपी में 2020 की तुलना में चालू सीजन में 69.4% की कमी दर्ज की गई है. हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है.

पंजाब में क्यों सबसे ज्यादा जल रही पराली?

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पंजाब में धान की करीब 30 फीसदी कटाई बाकी है. इस साल बारिश ज्यादा होने की वजह से कटाई में पहले ही देर हो चुकी है. लेट वैराइटी के धान भी हैं. जबकि रबी सीजन की फसलों खासतौर पर गेहूं और सरसों की बुवाई का वक्त निकल रहा है. ऐसे में किसानों को पराली गलाने से ज्यादा जलाने में फायदा दिख रहा है. उनका समय बच रहा है. दूसरे राज्यों की तरह वहां की सरकार ने पूसा डीकम्पोजर का प्रचार भी नहीं किया इसलिए वहां धान का अवशेष सबसे ज्यादा जल रहा है.

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